वो जो आप दूसरों की तबाही देख आहें-चीख़ें बेबस चीत्कार सुन मन ही मन ख़ुश हो रहे हो सदियों पुरानी कुंठा का नासूर सहला रहे हो! लानत है आपके सभ्य होने पर सामाजिक मूल्य खोकर जीने पर! © रवीन्द्र सिंह यादव |
साहित्य समाज का आईना है। भाव, विचार, दृष्टिकोण और अनुभूति का आतंरिक स्पर्श लोकदृष्टि के सर्जक हैं। यह सर्जना मानव मन को प्रभावित करती है और हमें संवेदना के शिखर की ओर ले जाती है। ज़माने की रफ़्तार के साथ ताल-सुर मिलाने का एक प्रयास आज (28-10-2016) अपनी यात्रा आरम्भ करता है...Copyright © रवीन्द्र सिंह यादव All Rights Reserved. Strict No Copy Policy. For Permission contact.
रविवार, 24 अप्रैल 2022
नासूर
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