समाचार पढ़ा-
संवेदनाशून्य होते समाज का
यह सच
अब किसी आवरण में नहीं ढका है,
अंतर्मन आज सोच-सोचकर थका है,
अपनी ही लाश ढोता आदमी,
अभी नहीं थका है।
हम क्यों भूल जाते हैं,
जीवन में पिता का अतुल्य योगदान,
क्यों विस्मरण हुआ यक्ष का प्रश्न,
और युधिष्ठिर का उसे दिया उत्तर ?
दुनिया के दस्तूर हों
या अपने पैरों पर खड़े होने की दक्षता,
क्षमादान हो या हारी-बीमारी,
सपनों को पंख लगाने की ललक हो
या तुम्हारे टूटकर बिखरने पर संबल देना,
पिता ने कब अपनी निष्ठुरता दिखाई ???
जानते हो....... !
ठण्ड की अकड़न और ठिठुरन क्या होती है ?
किसी ख़ानाबदोश परिवार को देखो,
कैसे सहअस्तित्व की परिभाषा गढ़ते हैं वे,
सभ्य-सुसंस्कृत समाज को,
अपने मूल्यों के सिक्कों की खनक / चमक से,
चौंधियाते रहते हैं।
@रवीन्द्र सिंह यादव
"बेटे ने सर्द रात में बाप को घर के बाहर सुला दिया "
संवेदनाशून्य होते समाज का
यह सच
अब किसी आवरण में नहीं ढका है,
अंतर्मन आज सोच-सोचकर थका है,
अपनी ही लाश ढोता आदमी,
अभी नहीं थका है।
हम क्यों भूल जाते हैं,
जीवन में पिता का अतुल्य योगदान,
क्यों विस्मरण हुआ यक्ष का प्रश्न,
और युधिष्ठिर का उसे दिया उत्तर ?
दुनिया के दस्तूर हों
या अपने पैरों पर खड़े होने की दक्षता,
क्षमादान हो या हारी-बीमारी,
सपनों को पंख लगाने की ललक हो
या तुम्हारे टूटकर बिखरने पर संबल देना,
पिता ने कब अपनी निष्ठुरता दिखाई ???
जानते हो....... !
ठण्ड की अकड़न और ठिठुरन क्या होती है ?
किसी ख़ानाबदोश परिवार को देखो,
कैसे सहअस्तित्व की परिभाषा गढ़ते हैं वे,
सभ्य-सुसंस्कृत समाज को,
अपने मूल्यों के सिक्कों की खनक / चमक से,
चौंधियाते रहते हैं।
@रवीन्द्र सिंह यादव