गुरुवार, 28 सितंबर 2017

भगत सिंह का लिए मुखौटा खड़े हुए हैं ढोंगी आज

शहीद-ए-आज़म सरदार भगत सिंह पर विशेष

  28 सितम्बर 1907 को जन्मा, 

भारत का करिश्माई लाड़ला लाल,

क़ुर्बान  हुआ हम सब की ख़ातिर, 

कर गया भारत का उन्नत भाल। 


23 वर्ष उम्र-ए-नौजवानी में दे दी शहादत,

दीवानगी की हद तक आज़ादी की इबादत।

ख़ुशी-ख़ुशी झूल गए फांसी के फंदे पर, 

भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव,

क़ुबूल  किया था अपना कृत्य, 

चुना शानदार शहादत को स्वयमेव। 


इंक़लाब ज़िंदाबाद, हिंदुस्तान ज़िंदाबाद, 

भगत सिंह के नारे थे,

लाला लाजपत राय की जान के बदले, 

दुष्ट सॉण्डर्स को गोली मारे थे। 


सीएलए दिल्ली में बम फेंककर,

धूर्त गोरों को ख़ूब डराया था,

ले ज़िम्मेदारी  अपने  कन्धों पर, 

क्राँति का अलख जगाया था। 


लिखने का जूनून सवार था, 

मरते दम तक लिखना जारी था ,

सत्ता, पूँजी के केन्द्रीयकरण का, 

मुखर विरोध चिंतन में भारी था। 


मानवता के लिए लड़े भगत सिंह,

आज़ादी के लिए अड़े भगत सिंह,

सांप्रदायिकता से भिड़े भगत सिंह,

थे समाजवाद का परचम ले खड़े भगत सिंह।   


कायरता, चतुराई, चालाक चुप्पी, साज़िश, मक्कारी का, 

अब  खेल हुआ प्रिय सबको,

बेख़ौफ़ था अंजाम-ए-शहादत से, 

स्वाधीन चेतना का अमर हीरो हुआ प्रिय सबको। 


"व्यक्ति को मारना आसान है विचार को नहीं"... , 

कहना था दुलारे भगत सिंह का,

"मैं नास्तिक क्यों हूँ" लेख लोकप्रिय हुआ जग में, 

क्रांति के उजियारे सूर्य भगत सिंह का। 


भगत सिंह का लिए  मुखौटा खड़े हुए हैं ढोंगी आज,  

सरकारी काग़ज़ में लिख पाए न शहीद उन्हें,

होड़ा-होड़ी ख़ूब मची है शहीदों को हथियाने की,

लौट आओ ए भगत सिंह दे जाओ दीद उन्हें। 


सरकारी सम्मान पाने के 

भगत सिंह मोहताज  नहीं, 

अपने शहीद-ए-आज़म  को 

भूला कोई आज नहीं।


23 मार्च का यादगार दिन 

पैग़ाम शहीदों का लाता है 

देशप्रेम की अलख जगाने 

  क्रांति का ध्वज लहराता है।   

जय हिन्द! 

© रवीन्द्र सिंह यादव 

मंगलवार, 26 सितंबर 2017

अपनी अस्मिता क़ुर्बान करनी चाहिए थी ?

कुलपति साहब तो क्या 
उस छात्रा को 
संस्थान की अस्मिता के लिए 
अपनी अस्मिता 
क़ुर्बान करनी चाहिए थी?
बीएचयू  के मुखिया को 
ऐसी बयानबाज़ी करनी चाहिए थी?


जो बेटियों द्वारा 
संस्थान की अस्मिता के लिए 
आहूत शुद्धि-यज्ञ को 
सियासी साज़िश बताते हैं
ऐसी विभाजनकारी मानसिकता के 
लोग भी 
सरकारी कृपा से कुलपति बन जाते हैं।   

सभ्यता की सीढ़ियाँ 
चढ़ता मनुष्य 
पशुओं से अधिक 
पाशविक-व्यवहार पर 
उतर आया है 
घटना का ज़िक्र देख-सुन 
आँखों में लहू उतर आया है। 

साइकिल पर शाम साढ़े छह बजे 
बीएचयू कैंम्पस में हॉस्टल जाती 
17 वर्षीय एक  छात्रा के 
वस्त्रों में 
बाइक पर सवार होकर 
हाथ डालने के संस्कार 
किसी माँ-बाप ने 
अपने अशिष्ट, मनोरोगी बेटे को दिए हैं?


मीडिया प्रबंधन की 
पोल खुल गई है 
विज्ञापनों के फेर में 
मीडिया-मालिक की 
ज़ेहनियत  पर 
फ़रेबी-संवेदना की 
कलई अब धुल गयी है। 


अफ़सोस! कि वाराणसी एक तीर्थ है 
जहाँ भी मानवता को 
शर्मसार करनेवाले भेड़िये पलते हैं 
सर्वविद्या की सांस्कृतिक राजधानी में
वर्जनाओं की फ़ौलादी ज़मीं पर 
सामंतवादी पुरुषसत्ता की टकसाल में 
सांस्कृतिक बेड़ियों के सिक्के ढलते हैं। 


धरने पर बैठीं बेटियाँ 
अपनी सुरक्षा के लिए 
सड़क पर रात गुज़ारती हैं
अगली अँधेरी रात में 
वे निहत्थी हैं फिर भी 
क्रूर पुरुष-पुलिस की 
सर पर लाठियाँ खातीं हैं। 

कमाल का मलाल है 
बनारसी लोगों के मन में   
उन्हें अफ़सोस है 
कि प्रधानमंत्री के काफ़िले का 
पूर्व निर्धारित रुट बदलने से 
उनके द्वार की मिट्टी  
पवित्र न होने पाई...! 

सुनो! 
खोखली मान्यताओं के पहरेदारो! 
बेटी है अब सड़क पर उतर आई 
नए मूल्यों की इबारत लिखने से 
रोक पाओगे उसे?
सुनो!
पशुओं को भी 
लज्जित कर देने वाले दरिंदो! 
तुम भी किसी के जीवनसाथी 
क्या अब बन पाओगे? 
तुम किसी माई के लाल हो 
किसी बाप की नाक का बाल हो 
तुम भी किसी बहन के हो भाई 
या किसी बेटी के बनोगे बाप..!  
तुम्हारा ज़मीर जाग जाय तो अच्छा है 
वरना!
 जीवनभर अपराधबोध के अंधकार में
अपनी ही नज़रों से गिरकर  
भटकोगे और कचोटेगा संताप..!  


ख़ुफ़िया-तंत्र को चुल्लूभर पानी काफ़ी है 
हमारी ओर से उसे नहीं कोई माफ़ी है। 
ख़बर है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की 
नींद आज खुल गयी है 
राष्ट्रीय महिला आयोग की 
न जाने क्यों घिग्घी बँध गयी है?
©रवीन्द्र सिंह यादव 


"धर्म की बात करने का अधिकार उन्हीं को है जो ख़ुद धर्म पर चलते हैं। तुम ये बताओ कि 

क्या लड़कियों ने यह धर्म का पालन किया कि एक लड़की की अस्मिता को लेकर वे 

बाज़ार पहुँच गईं?"

बीएचयू कुलपति महोदय के इस बयान से खिन्न होकर मैंने यह कविता लिखी।
-रवीन्द्र  

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में हुई छेड़छाड़ की अभद्र घटना पर मेरा लेख -
                       राष्ट्रवाद की चालाक व्याख्या में पिसती छात्राओं की आज़ादी
                                   https://hamaraakash.blogspot.in/2017/09/blog-post.html


शब्दार्थ / पर्यायवाची।   WORD MEANINGS 
कुलपति= विश्वविद्यालय का शीर्ष अधिकारी /VICE  CHANCELLOR  
संस्थान - INSTITUTE 
अस्मिता = गौरव ,गरिमा , अभिमान ,पहचान / PRIDE 
क़ुर्बान= मिटा देना(स्वयं को ) , बलिदान करना , त्याग करना /                             SACRIFICE 
बीएचयू = बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी 
पाशविक व्यवहार= पशुओं जैसा बर्ताव , नृशंस व्यवहार /BEHAVE                                         LIKE ANIMAL, BRUTAL ACTIVITIES 
साइकिल = मानवीय ऊर्जा से चालित दो पहिया वाहन / BICYCLE 
              (BI = दो , CYCLE = चक्र / पहिया अर्थात जिसमें दो पहिये हों )
बाइक = मोटर साइकिल, स्वचालित दो पहिया वाहन / MOTOR                           CYCLE  / BIKE 

अशिष्ट = असभ्य , शिष्टाचार से परे ,बदतमीज़ ,गुस्ताख़ /                                       UNCIVILIZED
फ़रेबी-संवेदना= छुपे ग़लत मक़सद की संवेदना / FALSE                                                 SENSITIVITY 
ज़ेहनियत = मानसिकता / MENTALITY 

मंगलवार, 19 सितंबर 2017

आँखें


ख़ामोश अदा चेहरे की,

व्यंगपूर्ण मुस्कान 

या 

ख़ुद को समझाता तसल्ली-भाव....?

आज आपकी डबडबाई आँखों में 

आयरिस के आसपास,

तैरते हुए चमकीले मोती देखकर.....

मेरे भीतर भी 

कुछ टूटकर बिखर-सा गया है......!  



ज़ार-ज़ार रोती आँखें 

मुझे भाती नहीं,

आँखें हैं कि

शिकायती-स्लेट बनने से 

अघाती नहीं। 


आपका कभी आँचल भीगता है 

कभी  मेरा  रुमाल,

बह जायें आँसू फिर देखिये 

चंचल नयनों के कमाल। 



दिल किसी का

यादें किसी की, 

सपने किसी के 

आँख किसी की,

इंतज़ार किसी का 

धड़कन किसी की,  

चैन किसी का 

बेक़रारी किसी की,

अक्स किसी का 

आँख किसी की, 

दिल में समायी प्रीत किसी की 

कहो कैसा क़ुदरती अनुबंध है?


किसी दामन में सर झुकाकर 

सुकूं मिलता है भरी आँखों को,

क़लम कहाँ लिख पाती है  

 पाकीज़गी-ए-अश्क़ के उन ख़्यालों को।   


आप मेरे दिल में उतरे 

मैं  आपके  दिल  में,

गुफ़्तुगू  ख़ूब  हुई 

दो दिलों की महफ़िल में, 

तड़प के सिवाय कुछ मिला क्या....?

खनकते एहसास लिये  

तमन्नाओं का हसीं कारवाँ मिला,

तभी तो चल पड़ा 

इश्क़ का नाज़ुक-सा सिलसिला। 


मैं अपनी गुस्ताख़ी  

ढूँढ़कर  ही  रहूँगा, 

ख़ज़ाना-ए-दिल बहने का 

सबब तलाश कर ही लूँगा, 

क्योंकि आपने 

आज मुझे टफ टास्क दिया है -

"दिल में ऐसा क्या चुभता है 

कि ज़ुबाँ चुप रहती है,

आँखें बयाँ करती हैं?"



कब से हम खुलकर  मुस्काये नहीं 

गये वक़्त की रुस्वाइयाँ  बयां करती हैं,

चेहरे  पर उदासी का पहरा 

और झुकी-झुकी पलकें 

बे-रूखी का क़िस्सा बयां करती हैं। 



है  हार  क़ुबूल  मुझे

नहीं मैं अना-पसंद 

रणछोड़दास जी का 

पथ अनुगमन करता हूँ,

चेहरे पर खिली तबियत हो  

ईष्ट  को  नमन  करता  हूँ।  

बस यही दुआ और इल्तिजा करता हूँ-

ज़िन्दगी को जीभर खिलने-मुस्कराने दो अब,

सपनों में भी आँसुओं को  न ज़ाया  होने दो अब। 

#रवीन्द्र सिंह यादव 

शब्दों के अर्थ /पर्यावाची / WORD  MEANING 

आयरिस =आँख की पुतली / IRIS / PUPIL 

पाकीज़गी-ए-अश्क़= आँसुओं  की पवित्रता / PURITY OF TEARS 

ख़ज़ाना-ए-दिल= आँसू / TEARS 

गुस्ताख़ी  =ढिठाई , बे-अदबी ,अशिष्टता /ARROGANCE 

टफ  टास्क= कठिन, चुनौतीभरा  कार्य / TOUGH TASK 

रुस्वाइयाँ= बदनामियाँ / DISGRACES 

अना-पसंद = अहंकारवादी ,अहंवादी, अपने अहंकार को आगे रखने वाला  / Egotist 

रणछोड़दास =श्रीकृष्ण / LORD KRISHNA 

ज़ाया = बरबाद ,नष्ट, नाश  / WASTE / DESTROY  


शनिवार, 16 सितंबर 2017

खाता नम्बर


ग़ौर से देखो गुलशन  में 

बयाबान का साया है ,

ज़ाहिर-सी बात है 

आज फ़ज़ा ने जताया है। 




इक  दिन  मदहोश  हवाऐं 

कानों  में  कहती  गुज़र  गयीं,

 उम्मीद-ओ-ख़्वाब  का  दिया 

हमने  ही  बुझाया  है।   



आपने अपना खाता नम्बर  

विश्वास  में  किसी  को  बताया है,

तभी तो तबादला होकर दर्द 

आपके हिस्से में आया है।   



दर्द अंगड़ाई ले लेकर  

जाग उठता है  पहर-दर-पहर, 

कुछ ब्याज का हिस्सा भी 

बरबस आकर समाया है। 



आपके तबस्सुम में रहे 

वो  रंग-ओ-शोख़ियां  अब  कहाँ ?

उदास तबियत का 

दिन-ओ-दिन  भारी  हुआ  सरमाया  है। 



बिना अनुमति के खाते में 

न कुछ जोड़ा जाए,

अब जाकर राज़दार का पता 

बैंक से की इल्तिजा में बताया है।   

#रवीन्द्र सिंह यादव 

शब्दार्थ / पर्यायवाची  / WORD MEANINGS

ग़ौर से = ध्यान से, TO BE  FOCUSED 
गुलशन = फूलों का बगीचा / FLOWER GARDEN  
बयाबान =जंगल ,वीराना / WILDERNESS 
साया = छाया,शरण  / SHADOW,SHADE ,SHELTER  
फ़ज़ा= वातावरण ,परिवेश /AMBIENCE 
खाता =ACCOUNT 
ब्याज =INTEREST 
तबादला=स्थानांतर,बदली होना  / TRANSFER 
तबस्सुम =मुस्कराहट / SMILE 
शोख़ियाँ =शरारतें / MISCHIEF   
सरमाया =पूँजी ,संपत्ति / CAPITAL /WEALTH 
राज़दार = राज़/ रहस्य / गुप्त बातें  जानने वाला / FAITHFUL 
इल्तिजा  = विनती ,अनुरोध ,प्रार्थना / REQUEST 

बुधवार, 13 सितंबर 2017

सरकारी बंद लिफ़ाफ़ा




एक एनजीओ की याचिका पर 

माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने 

भारत सरकार को  आदेश दिया
  
केन्द्रीय  प्रत्यक्ष कर बोर्ड  ने 

कल 105 क़ानून बनाने वाले आदरणीयों (?) के नाम का 

सीलबंद लिफ़ाफ़ा शीर्ष अदालत को सौंप दिया।



इन पर आरोप है कि 

चुनाव जीतते ही इनकी संपत्ति में 

500 से 1200 प्रतिशत तक  का इज़ाफ़ा हुआ है

देश को ऐसा आश्चर्य पहली बार नहीं हुआ है। 



100 रुपये पर 10  रुपये  बढ़ना  10 प्रतिशत वृद्धि  होता है 

इनके साथ खड़ा हड़प-तंत्र होता है 

कहीं-कहीं 1700 और  5000 प्रतिशत का भी ज़िक्र है 

जोकि हमारी आज की सबसे बड़ी फ़िक्र है। 



इन सफ़ेदपोशों के नाम बंद लिफ़ाफ़े में क्यों ?

इनके आय के समस्त स्त्रोत गुप्त क्यों ?

इस लूट पर अपनी  सरकार है  सुप्त  क्यों ?

ये ऐसा चमत्कारी फ़ॉर्मूला  जनता को नहीं बताते क्यों ?

ये ढोंगी, धूर्त जनसेवक चुनाव-सभा में देशभक्ति गीत  बजाते  क्यों ?

हम भी जानना चाहते हैं देश ने इन्हें ऐसा हक़ कब दिया था ?

1955  में  ही  ख्वाजा अहमद अब्बास ने 

 राजकपूर अभिनीत फिल्म में इन्हें "श्री 420" लिख दिया था। 
#रवीन्द्र सिंह यादव 

विशिष्ट पोस्ट

मूल्यविहीन जीवन

चित्र: महेन्द्र सिंह  अहंकारी क्षुद्रताएँ  कितनी वाचाल हो गई हैं  नैतिकता को  रसातल में ठेले जा रही हैं  मूल्यविहीन जीवन जीने को  उत्सुक होत...