ईवीएम के समाचार पढ़कर
मुझे स्मरण हो आते हैं शकुनि के प्रबल पासे
वे सत्ता-संपत्ति के नहीं बल्कि थे रक्त के प्यासे
द्रौपदी द्वारा दुर्योधन का उपहास
बन गई गले की चुभनभरी फाँस
शक्ति,साधन,मर्यादा,दर्प और ऐश्वर्य
शकुनि के पासों के आगे नत-मस्तक
छल बल है निरपराध के लिए घातक
नियम पालन की नैतिकता से बँधे रहे महारथी चुपचाप
स्त्री-गरिमा होती तार-तार देखते रहे शीश झुकाए क्रूरता का वीभत्स नाच
इतिहास का असहज सत्य
तबाही के उपरांत आ खड़ा होता है
कहता है-
छल आश्रय लेता है
सहसा अनैतिकता के भंडार में!
©रवीन्द्र सिंह यादव
कटु सत्य, सराहनीय चिंतन,सशक्त अभिव्यक्ति।
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सिंहासन के युद्ध में
धन-बल-छल से युक्त प्रंपच से
सत्ता के सफल व्यापारी
सक्षम है करने को आज भी
मानव तस्करी।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार १६ जुलाई २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
काफी से अधिक सुंदर
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
काफी से अधिक सुंदर
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली लेखन
जवाब देंहटाएंकडवा ,परन्तु सच है ....बहुत खूबसूरत सृजन अनुज रविन्द्र जी
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंईवीएम और शकुनि के छल की कोई संगति तो नहीं है फिर भी आपकी काव्यशैली बहुत अच्छी है उसमें ध्वनित विरोध भी सार्थक है ्
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन,सत्य को दर्शाती रचना,आदरणीय शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंअनुपम
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंशक्ति,साधन,मर्यादा,दर्प और ऐश्वर्य
जवाब देंहटाएंशकुनि के पासों के आगे नत-मस्तक
छल बल है निरपराध के लिए घातक
.... बहुत सही .... .. बहुत कुछ नहीं बदला है आज भी ,,,,,
चिंतन परक सृजन ।
जवाब देंहटाएंछल आश्रय लेता है
जवाब देंहटाएंसहसा अनैतिकता के भंडार में!
बहुत सटीक.. कटु सत्य को उजागर करती बहुत ही चिंतनपरक रचना।
सत्य है
जवाब देंहटाएंसच्ची बात बताती है आपकी कविता, शकुनि के पासों से लेकर आज की EVM तक जो जोड़ा है ना, वो काबिले तारीफ़ है। शकुनि के पासे सिर्फ जुए के औजार नहीं थे, वो तो पूरी व्यवस्था के पतन के प्रतीक बन गए। आज भी जब कोई ईवीएम की खबर आती है, तो लगता है जैसे वही पासे फिर से चल पड़े हों, बस शकुनि अब सूट-बूट में आ गया है। आपकी कविता एक सीधा तमाचा है, वक़्त पर, व्यवस्था पर, और हम सबकी उदासीनता पर।
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