कविता!
तुम्हें फिर ज़िंदा होना होगा
घृणा का सागर पीने हेतु
प्रेम और वैमनस्य के बीच
बनना होगा पुनि-पुनि सेतु
पथराई संवेदना पर
बिछानी होगी
मख़मली मिट्टी की चादर
ओक लगाकर
पीना होगा
महासागर-सा अप्रिय अनादर
रोपने होंगे बीज सद्भाव के
सहेजने होंगे
किसलय-कलियाँ,कुसुम-पल्लव
मिटाने होंगे दाग़ नासूर-घाव के
कविता!
तुम्हें जीना ही होगा
मूल्यों की पुनर्स्थापना के लिए
प्रबुद्ध मानवता की संरचना के लिए!
© रवीन्द्र सिंह यादव
कविता!
जवाब देंहटाएंतुम्हें जीना ही होगा
मूल्यों की पुनर्स्थापना के लिए
प्रबुद्ध मानवता की संरचना के लिए!
..... बहुत सटीक आग्रह। शुष्क, संवेदनाहीन हो चले समय में कविता ही कोमल भावनाओं का पुनर्जागरण कर सकती है। बहुत सुंदर कविता 🙏
उत्साहवर्धन करती सारगर्भित टिप्पणी हेतु सादर आभार आपका आदरणीया।
हटाएंहृदय स्पर्शी कविता। हार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएंमनोबल बढ़ाती टिप्पणी के लिए सादर आभार आपका आदरणीय।
हटाएंमित्र, तुमने कविता को बड़ा भारी काम दे डाला है.
जवाब देंहटाएंवो बेचारी अकेली, इतने सारे ढोंगी देशभक्तों से, इतने सारे पाखंडी धर्मात्माओं से, इतने सारे मतिभ्रष्ट समाज के ठेकेदारों से, कैसे लड़ेगी और उन पर विजय प्राप्त कर कैसे सुनहरे वर्त्तमान और उज्जवल भविष्य का निर्माण करेगी?
सादर प्रणाम सर.
हटाएंआपके व्यंग्य में ही कविता की आत्मा की अमरता का सार निहित है. आज उन्मादी माहौल में कविता की भावभूमि लहूलुहान हो गई है.
रोपने होंगे बीज सद्भाव के
जवाब देंहटाएंसहेजने होंगे
किसलय-कलियाँ,कुसुम-पल्लव
काश !कविता रोप पाती सद्भावना के बीज !
जगा पाती संवेदना !
बहुत ही उत्कृष्ट एवं लाजवाब सृजन।
सादर आभार आदरणीया सुधा जी कविता के अंतरसंघर्ष पर मनोबल बढ़ाती टिप्पणी हेतु.
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