चित्र: महेन्द्र सिंह
अहंकारी क्षुद्रताएँ
कितनी वाचाल हो गई हैं
नैतिकता को
रसातल में ठेले जा रही हैं
मूल्यविहीन जीवन जीने को
उत्सुक होता समाज
अपने लिए काँटे बो रहा है
अथवा फूल
यह तो समय देखेगा
पीढ़ियों को कष्ट भोगते हुए
मूल्यविहीनता का क़र्ज़ उतारते हुए।
©रवीन्द्र सिंह यादव
बेहतरीन मर्मस्पर्शी सार्थक यथार्थ परक रचना आदरणीय सादर
जवाब देंहटाएंमित्र, विचार तो तुम्हारे उत्तम हैं किन्तु नेताओं के लिए उपयोगी नहीं हैं क्योंकि मूल्यविहीन जीवन ही तो उनको कुर्सी तक पहुंचाता है.
जवाब देंहटाएंसही-गलत
जवाब देंहटाएंनैतिक-अनैतिक
पाप-पुण्य
सभी एक ही राह के
पथिक हो जब,
मानवता का पहिया
असंवदेनाओं के कीलों से
बींधा व्यथित हो जब,
इंतजार करो,
क्योंकि समय चक्र
कर्मों का बही-खाता लिए
अनवरत गतिमान है।
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कम शब्दों में गहन भावाभिव्यक्ति।
सादर।
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १ मार्च २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
ये आज के लिए जरूरी शर्तों में आता है
जवाब देंहटाएंआज के हालातों का सटीक चित्रण
जवाब देंहटाएंबेहतरीन पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंमूल्यविहीनता का कर्ज उतारना आसान भी नहीं होगा समाज के लिए आने वाली पीढियों के लिए... फिर भी सब आज में जिए जा रहे बेपरवाह से...
जवाब देंहटाएंगहन चिंतनपरक लाजवाब सृजन ।