मंगलवार, 22 जनवरी 2019

नारियल और बेर


नारियल बाहर भूरा

अंदर गोरा पनीला,

बाहर दिखता रुखा

अंदर नरम लचीला।


बाहर सख़्त खुरदरा

भीतर उससे विपरीत,

दिखते देशी, हैं अँग्रेज़

है कैसी जग की रीत।


युग बीत गये बहुतेरे

बदला न मन का फेर,

अंदर कठोर बाहर रसीला

मिलता खट्टा-मीठा बेर।


हैं क़ुदरत के खेल निराले

जीवन का मर्म सरल-सा,

दृष्टिकोण और मंथन में

आ रहा उबाल गरल-सा।

© रवीन्द्र सिंह यादव



5 टिप्‍पणियां:

  1. वाह आदरणीय सर कमाल की रचना
    वास्तव में कुदरत के खेल निराले हैं
    बस देखना ये है कि कौन कैसी समझवाले हैं
    सादर नमन शुभ संध्या

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. रचना का मर्म समझकर प्रतिक्रिया लिखने हेतु शुक्रिया आँचल जी।

      हटाएं
  2. बहुत खूब आदरनीय रवीन्द्र जी !! कुदरत के खेल निराले भी और शाश्वत भी | नारियल हो या बेर इनके स्वभाविक धर्म को कुदरत ने सदैव बरकरार रखा है |बहुत ही अलग सृजन के लिए हार्दिक शुभकानाएं और बधाई |

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (05-11-2019) को   "रंज-ओ-ग़म अपना सुनाओगे कहाँ तक"  (चर्चा अंक- 3510)  पर भी होगी। 
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    -- 
    दीपावली के पंच पर्वों की शृंखला में गोवर्धनपूजा की
    हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाई।  
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  4. आपकी इस रचना को पढ़कर एक मराठी वारकरी संत शेख महंमद का यह पद आ गया -
    ऐसे केले या गोपाळे | नाही सोवळे ओवळे ||
    काटे केतकीच्या झाडा | आंत जन्मला केवडा ||
    फणसाअंगी काटे | आंत अमृताचे साठे ||
    नारळ वरूता कठिण | परी अंतरी जीवन ||
    शेख मंहमंद अविंध | त्याचे ह्रदय गोविंद ||
    केतकी के पेड़ पर कांटे किंतु अंदर सुगंधित केवड़ा, कटहल बाहर से कँटीला पर अंदर से मीठा, नारियल बाहर से कठिन परंतु उसके अंदर है जीवन (जल), शेखमहंमद मुस्लिम पर उसके हृदय में है गोविंद !!!
    शेख महंमद ऐसे संत हुए जिन्होंने हिंदु मुस्लिम एकता का अनुपम उदाहरण स्थापित किया।
    आपने भी यही लिखा है -
    हैं क़ुदरत के खेल निराले
    जीवन का मर्म सरल-सा..... और वह मर्म आपसी प्रेम और भाईचारा ही है शायद !!!

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणी का स्वागत है.

विशिष्ट पोस्ट

मूल्यविहीन जीवन

चित्र: महेन्द्र सिंह  अहंकारी क्षुद्रताएँ  कितनी वाचाल हो गई हैं  नैतिकता को  रसातल में ठेले जा रही हैं  मूल्यविहीन जीवन जीने को  उत्सुक होत...