शुक्रवार, 13 अक्तूबर 2023

भीड़

पढ़ा होगा आपने कभी 

नीड़ का निर्माण 

अब पढ़ते रहिए 

भीड़ का निर्माण 

मनोवैज्ञानिक

समाजशास्त्री 

करते रहे शोध 

भीड़ के चरित्र पर 

राजनीति ने लाद दी 

अपनी मनोकामनाएँ भीड़ पर

अंतर में छाए अँधेरों में 

उभरते हैं बिंब लिए उन्मादी उमंगें  

साझा सहमति से उभरती हैं 

विनाश की तीखी तीव्र तरंगें

या किसी और के द्वारा तय 

लक्ष्य की ओर 

मुड़ जाती है भीड़...

क्योंकि 

भीड़ का कोई धर्म नहीं होता 

बुध्दि, विवेक, मर्म नहीं होता।      

©रवीन्द्र सिंह यादव

7 टिप्‍पणियां:

  1. अंधी भीड़ रौंदती है सभ्यताओं को,
    पाँवों के रक्तरंजित धब्बे,मानवीयता भुला
    लिखते हैं क्रूरता का इतिहास...।
    समसामायिक सराहनीय अभिव्यक्ति।
    सादर।
    ----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार १७ अक्टूबर२०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।


    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर भाई रविन्द्र जी, यथार्थ परक लेखन।
    वैसे भीड़ का लक्ष्य होता ही कब हैं उन्माद ही होता है।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही सुन्दर सार्थक समसामयिक यथार्थ परक रचना आदरणीय सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 22 अक्टूबर 2023 को लिंक की जाएगी .... https://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

    जवाब देंहटाएं
  5. बिलकुल सही बात।
    कुछ वर्ष पहले मैंने भी एक "भीड़" शर्शक पर कविता लिखी थी।

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणी का स्वागत है.

विशिष्ट पोस्ट

मूल्यविहीन जीवन

चित्र: महेन्द्र सिंह  अहंकारी क्षुद्रताएँ  कितनी वाचाल हो गई हैं  नैतिकता को  रसातल में ठेले जा रही हैं  मूल्यविहीन जीवन जीने को  उत्सुक होत...