बालू की भीत बनाने वालो
अब मिट्टी की दीवार बना लो
संकट संमुख देख
उन्मुख हो
संघर्ष से विमुख हो गए हो
अभिभूत शिथिल काया ले
निर्मल नीरव निर्झर के मार्ग में
हे शिल्पी!
शिलाखंड पर कब से बैठे हो
उठो! मुक्ति-मार्ग संशय से मिलता तो
हर भटके राही को मंज़िल की क्यों फ़िक्र हो!
करो प्रहार हथौड़ा हाथ है
सुगढ़ मूर्ति साकार हो!
©रवीन्द्र सिंह यादव
शब्दार्थ सम्मुख
1. बालू = रेत, बालुका , Sand
2. भीत = भित्ति , दीवार , Wall
3. सम्मुख = सामने, आगे , समक्ष
4. उन्मुख = ऊपर की ओर ताकता हुआ, उत्कंठा से देखता हुआ
5. विमुख = मुँह फेरना, अलग होना, जिसके मुँह न हो, मुखरहित
6. अभिभूत = हारा हुआ , पराजित
7. शिथिल = ढीला-ढाला, थका हुआ,
निराश,विरक्त मन के लिए सकारात्मकता का आह्वान करती सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १३ दिसम्बर २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संशय को त्याग कर्मपथ पर बढ़ने का आह्वान करती सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंउठो! मुक्ति-मार्ग संशय से मिलता तो
जवाब देंहटाएंहर भटके राही को मंज़िल की क्यों फ़िक्र हो
लाजवाब उद्यम आह्वान👌👌🙏🙏
उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः । न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः
बहुत सुन्दर..,कर्मयोग का आह्वान करती बेहतरीन रचना ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्यारी सी रचना
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