रविवार, 29 दिसंबर 2024

सबसे लंबी रात

गोधूलि वेला बीतने पर 

तम के तट पर 

उतर रही थी यामिनी 

उजाले क़िस्तों में 

ख़ुद-कुशी कर रहे थे 

बेसुरे संगीत में 

चीख़ उठी थी रागिनी

बसेरों में पंछी लौट चुके थे 

तम के गहराने पर आश्वस्त 

उल्लू-चमगादड़  

आह्लादित हो चुके थे

21-22 दिसंबर साल की सबसे लंबी रात 

सबेरा होने के पूर्वाग्रह से भयभीत थी 

चाहती थी और लंबी होना 

तो मुर्ग़ों को बाँग न देने के लिए 

धमका दिया

मुर्ग़े आराम-तलबी के ग़ुलाम थे तो चुप रहे

कोहरे से भी साँठगाँठ हुई    

फिर भी सुबह हो गई  

उजालों की बाढ़ में 

अँधेरा ग़ाएब हो गया

वक़्त की ठोकर में 

तम का अहंकार ढह गया। 

©रवीन्द्र सिंह यादव    



4 टिप्‍पणियां:

  1. उजालों की बाढ़ में

    अँधेरा ग़ाएब हो गया

    वक़्त की ठोकर में

    तम का अहंकार ढह गया।
    आशान्वित करती बहुत ही लाजवाब रचना
    वाह!!!

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह! अनुज रविन्द्र जी ,बहुत खूबसूरत!

    जवाब देंहटाएं
  3. रात जितनी गहरी और लंबी होगी,
    भोर उतनी मनभावनी,नवरंगी होगी।
    एक अलग सोच की सुंदर अभिव्यक्ति।
    सादर
    -----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार ३१ दिसम्बर २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं

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