गुरुवार, 20 मार्च 2025

सत्य की दीवार


सत्य की दीवार 

उनका निर्माण था

कदाचित उन्हें 

सत्य के मान का भान रहा होगा

सरलता और सादगी का जीवन 

उनकी पहचान रहा होगा

मिथ्या वचन,छल,पाखंड,क्रूरता,अन्याय और दंभ

तब उस पवित्र दीवार से 

परे ही रहे होंगे

नकारात्मक मूल्यों की गंध पर 

विवेक की पंखुड़ियों का 

सतत सख़्त पहरा रहा होगा

कालांतर में क्षरण हुआ 

सजगता और 

सत्य के प्रति आग्रह का   

छल अति क्षुधित पाषाण-सा 

टकराता रहा सत्य की दीवार से 

अंततः दीवार क्षतिग्रस्त हुई 

और बन गए झरोखे ही झरोखे

पतित मूल्यों के 

उस प्राचीन दीवार में... 

©रवीन्द्र सिंह यादव       

      

3 टिप्‍पणियां:

  1. सच ठहरा होता है,
    अविचल,अभेद्य
    मूक-बधिर सच
    निर्विकार,निश्चेष्ट
    देखता-सुनता रहता है
    विरूदावली
    आह्वान और प्रलाप।
    अतः पतित मूल्य जितने भी झरोखे बन लें
    सच की एक किरण ही काफी है
    उजाला फैलाने के लिए...।
    समसामयिक परिदृश्य पर विचारणीय अभिव्यक्ति।
    सादर।
    ------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २१ मार्च २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    --------

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहद सुंदर रचना
    बधाई

    जवाब देंहटाएं
  3. पतित मूल्य सत्य की दीवार को भले क्षतिग्रस्त कर पा रहे हैं, उसे धराशायी नहीं कर पाएँगे यह विश्वास ही सत्य की दीवार को मजबूती देगा.

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणी का स्वागत है.

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