कल-कल करती
निर्मल नदी को देखो
गतिमान है मुहाने की ओर
सूरज की तपिश
संलग्न है
नदी की काया को
छरहरा बनाने की ओर
नदी आशांवित होती है
पहुँचने मुहाने तक
सागर में मिलने हेतु
आगे मिल जाएँगीं
समा जाएँगीं
कुछ और छोटी-छोटी नदियाँ
उसकी जलराशि और सौंदर्य में इज़ाफ़ा करने
नदी उनका
तिरस्कार नहीं करती है
आह्लादित होती है
संगम और समंवय के साथ
मनुष्य,पशु-पक्षियों,पेड़-पौधों का
सुकून में बदलता है
प्यास का एहसास
देखकर बहती निर्मल नदी
लगे अंकुश मानवीय महत्वाकांक्षाओं पर
तो बहती रहे नदी
अविरल,अविचल,अविकल,अनवरत
सदी-दर-सदी कल-कल छल-छल।
©रवीन्द्र सिंह यादव
कुछ और छोटी-छोटी नदियाँ
जवाब देंहटाएंउसकी जलराशि और सौंदर्य में इज़ाफ़ा करने
नदी उनका
तिरस्कार नहीं करती है
आह्लादित होती है
संगम और समंवय के साथ
ये नदी की विशेषता है संगम और समंवय ...
लाजवाब सृजन
वाह!!!!
सादर आभार आदरणीया सुधा जी रचना का मर्म स्पष्ट करती मनोबल बढ़ाती टिप्पणी के लिए।
हटाएंनदी का स्वभाव
जवाब देंहटाएंसभ्यताओं की विकास यात्रा का
नाभिकीय केंद्र है।
सुंदर कविता और तस्वीर ।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ३१ मई २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
सादर आभार आदरणीया श्वेता जी रचना पर सारगर्भित टिप्पणी हेतु व 'पाँच लिंकों का आनन्द' पटल पर प्रदर्शन के लिए।
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंBahut sundar
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसबसे खास बात मुझे ये लगी कि आपने नदी को सिर्फ एक प्राकृतिक चीज़ नहीं दिखाया, बल्कि एक सोच, एक नजरिया बना दिया जैसे इंसान की ज़िंदगी की मंज़िल को नदी की तरह बयान कर दिया। आपने ये भी समझा दिया कि साथ मिलकर चलना, अपनाना और बहते रहना ही असली खूबसूरती है।
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