बुधवार, 29 मई 2024

नदी का स्वभाव

चित्र: महेन्द्र सिंह 

कल-कल करती 

निर्मल नदी को देखो

गतिमान है मुहाने की ओर 

सूरज की तपिश 

संलग्न है 

नदी की काया को 

छरहरा बनाने की ओर 

नदी आशांवित होती है 

पहुँचने मुहाने तक 

सागर में मिलने हेतु  

आगे मिल जाएँगीं 

समा जाएँगीं 

कुछ और छोटी-छोटी नदियाँ

उसकी जलराशि और सौंदर्य में इज़ाफ़ा करने  

नदी उनका 

तिरस्कार नहीं करती है 

आह्लादित होती है 

संगम और समंवय के साथ

मनुष्य,पशु-पक्षियों,पेड़-पौधों का 

सुकून में बदलता है 

प्यास का एहसास

देखकर बहती निर्मल नदी

लगे अंकुश मानवीय महत्वाकांक्षाओं  पर 

तो बहती रहे नदी 

अविरल,अविचल,अविकल,अनवरत 

सदी-दर-सदी कल-कल छल-छल।   

©रवीन्द्र सिंह यादव

9 टिप्‍पणियां:

  1. कुछ और छोटी-छोटी नदियाँ
    उसकी जलराशि और सौंदर्य में इज़ाफ़ा करने
    नदी उनका
    तिरस्कार नहीं करती है
    आह्लादित होती है
    संगम और समंवय के साथ
    ये नदी की विशेषता है संगम और समंवय ...
    लाजवाब सृजन
    वाह!!!!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीया सुधा जी रचना का मर्म स्पष्ट करती मनोबल बढ़ाती टिप्पणी के लिए।

      हटाएं
  2. नदी का स्वभाव
    सभ्यताओं की विकास यात्रा का
    नाभिकीय केंद्र है।
    सुंदर कविता और तस्वीर ।
    सादर।
    -----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ३१ मई २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  3. सादर आभार आदरणीया श्वेता जी रचना पर सारगर्भित टिप्पणी हेतु व 'पाँच लिंकों का आनन्द' पटल पर प्रदर्शन के लिए।

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणी का स्वागत है.

विशिष्ट पोस्ट

छल

ईवीएम के समाचार पढ़कर  मुझे स्मरण हो आते हैं शकुनि के प्रबल पासे वे सत्ता-संपत्ति  के नहीं बल्कि थे रक्त के प्यासे द्रौपदी द्वारा दुर्योधन का...