बुधवार, 28 फ़रवरी 2024

मूल्यविहीन जीवन

चित्र: महेन्द्र सिंह 


अहंकारी क्षुद्रताएँ 

कितनी वाचाल हो गई हैं 

नैतिकता को 

रसातल में ठेले जा रही हैं

 मूल्यविहीन जीवन जीने को 

उत्सुक होता समाज 

अपने लिए काँटे बो रहा है

अथवा फूल

यह तो समय देखेगा 

पीढ़ियों को कष्ट भोगते हुए

मूल्यविहीनता का क़र्ज़ उतारते हुए।  

©रवीन्द्र सिंह यादव

विशिष्ट पोस्ट

सोशल मीडिया

अभिव्यक्ति को विस्तार देने  आया सोशल मीडिया, निजता का अतिक्रमण करने  आया सोशल मीडिया धंधेबाज़ों को धंधा  लाया सोशल मीडिया  चरित्र-हत्या का मा...