तुम्हारा शौक
अब रोज़गार बन चुका है
पत्थर की खदान का ठेका
अपने आदमी को मिल चुका है
पत्थर तराशे जा रहे हैं
पहाड़ खोदे जा रहे हैं
तुम्हारे नाम के अक्षर
पत्थर पर खोदे जा रहे हैं
पत्थर चीख़ रहे हैं
फिर भी
नई-नई नाम पट्टिकाओं के
ऑर्डर बुक किए जा रहे हैं...
© रवीन्द्र सिंह यादव