गुरुवार, 30 जुलाई 2020

पृथ्वी और इंसान

पृथ्वी के नष्ट होने कीं 

भविष्यवाणियाँ 

अब तक 

निरर्थक साबित हुईं हैं 

2012 का फोबिया याद होगा

उसके बाद भी 

टीआरपी के लिए 

क्या-क्या कहकर

दिशाहीन मीडिया ने  

हिस्टीरिया उत्पन्न किया  

कुछ तो याद होगा... 

महान वैज्ञानिक 

स्टीफन हॉकिंस ने 

2017 में कहा था-

पृथ्वी अगले 600 वर्षों में

आग के गोले में तब्दील हो जाएगी 

जिसका कारण 

मानव की 

आक्रामकता ठहराई जाएगी 

जनसंख्या वृद्धि

ऊर्जा का अंधाधुंध प्रयोग 

ग्लोबल वार्मिंग 

मौसम और जलवायु परिवर्तन

न चाहते हुए मुख्य कारक बनेंगे 

इन पर छोड़ दिया 

दुनिया ने चिंतन 

स्टीफन तो 

ख़तरे की घंटी बजाकर 

किसी और दुनिया में चले गए 

इंसान ने अनसुनी की आवाज़ 

तो कोविड-19 महामारी लेकर 

करोना वायरस आ गया 

स्टीफंस की आवाज़ को 

प्रकृति ने सुना है 

या यह चीन की मानव निर्मित चाल है 

हम इस जंजाल में उलझ गए।  

© रवीन्द्र सिंह यादव

शुक्रवार, 24 जुलाई 2020

यह जो बरसात आई है

यह जो बरसात 

आई है

हर बार की तरह 

फिर इस बार

सुहानी तो बिल्कुल नहीं

कोढ़ में खुजली-सी

लग रही है इस बार

अभी बाढ़ से आई तबाही

है चर्चा में

कल सूखे की चर्चा होगी

अभी मरनेवालों की चर्चा है

कल 

फ़सल-भूखे की चर्चा होगी

करोना महामारी से 

जूझ रही दुनिया में

अब मौतों के आँकड़े

दबाए जा रहे हैं

वैक्सीन बनने के 

समाचार

कमाऊ मंशा से 

फैलाए जा रहे हैं

पीड़ित मानवता का 

दम घुट रहा है

कोई दोनों हाथों से 

दौलत समेट रहा है

कोई सरेआम लुट रहा है

सरकार-समाज

ज्ञान-विज्ञान

धर्म-ज्योतिष

तर्क-पाखंड 

न्याय-मज़लूम 

सामाजिक मूल्य-अवसरवादी मूल्यविहीन अमूल्य 

सभी वक़्त की कसौटी पर

अपनी-अपनी परीक्षा दे रहे हैं

फ़िलहाल

पावस ऋतु में  

साफ़ हवा में

आशंकित 

हम 

सांस ले रहे हैं।    

© रवीन्द्र सिंह यादव
   

मंगलवार, 14 जुलाई 2020

अनाड़ी नाविक

एक अनाड़ी नाविक

उतरा नदी में

इस यक़ीन के साथ

कि पार लग जाएगा

माहौल से बेपरवाह

मौसम के पैटर्न से अनभिज्ञ

मझधार तक पहुँचा

क्रुद्ध हवा ने

अचानक आकर

विश्वासघात किया

छूने लगी नीर नदी का

मनमानी ताक़त से

उठती-गिरती

तीव्र लहरों में

नाव का बैलेंस

डगमगा गया

अकेली नाव

दूर बहती दिखाई दी!

©रवीन्द्र सिंह यादव 

शनिवार, 11 जुलाई 2020

वह इतना कायर है कि प्रश्न से डर गया है

रटारटाया उत्तर

सुन-सुनकर

मन भर गया है

वह इतना कायर है

कि प्रश्न से डर गया है

खोखले आदर्शों की नींव

इतनी उथली

कि मंसूबों की इमारत

भरभराकर

ढह गई है

कोई भोंड़ा-सा उत्तर

सर्वथा अनापेक्षित है

क्योंकि प्रश्न

तीखे तो होते हैं 

कदाचित अनंत संभावनाओं के

जनक हैं

समाधान हैं

कारक हैं

किरदार हैं

प्रश्न खड़े किए जाते हैं

नैतिक नियंत्रण

लोक कल्याण

और न्याय के लिए

तो फिर पलायन कैसा

सामना करो!

हमें प्रश्न का उत्तर चाहिए

प्रतिप्रश्न नहीं। 

शुक्रवार, 3 जुलाई 2020

चींटियाँ

देख रहा हूँ चींटियों को

कतारबद्ध चलते हुए 

कुछ जातीं चींटियाँ 

कुछ आतीं चींटियाँ

सोच रहा हूँ 

कितनी दिमाग़दार हैं चींटियाँ

अपनी रानी की 

सेवादार / तीमारदार हैं चींटियाँ

विज्ञान-साहित्य ने 

इन्हें भी नाम दिया है

रानी और मज़दूर चींटियाँ

अफ़सोस!

यहाँ भी 

पूँजीवाद-सा भेदभाव!  

एकता-शक्ति का 

अनुपम उदाहरण हैं चींटियाँ

अंडा ले बिल से निकल पड़ें 

तो कारण हैं चींटियाँ

लगतीं हैं अब तो 

प्रवासी श्रमिकों-सीं चींटियाँ

किसी सियासी सरहद से 

बेख़बर रहतीं हैं चींटियाँ 

बड़े लक्ष्य 

हौसले से हासिल करने   

हाथ डालतीं हैं चींटियाँ

सतत प्रयत्नशील रहने का 

सबक़ सिखातीं हैं चींटियाँ।

 ©रवीन्द्र सिंह यादव      

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