सोमवार, 24 मई 2021

गंगा में बहतीं लाशें

लाशों की दुर्दशा के 

अनचाहे मंज़र 

मुझे सोने नहीं देते 

ये लाशें मुझसे पूछतीं हैं 

गुलाबी रातों के हसीं ख़्वाब में 

कब तक सोए रहोगे?

भारत की साख़ पर 

दुनिया को क्या जवाब दोगे?

अभावों में स्वभाव 

ऐसे बदले कि

चिता का सामान न जुटा सके  

अंतिम संस्कार से 

वंचित हुए पार्थिव शरीर

कुछ बहा दिए गंगा में 

कुछ रेत में दबा दिए... 

माँसाहारी पशु-पक्षी 

लाशों को नौंचते दिखे 

वीडियो बनानेवाले 

वीभत्स कृत्य देखते रहे 

आँधी-तूफ़ान भी आकर 

उड़ाकर रही-सही सूखी रेत

रह-रहकर शव उघाड़ते रहे

करोना महामारी की

दूसरी लहर ने 

ढाया ऐसा क़हर 

छाया है मातम ही मातम 

गाँव-शहर!   

© रवीन्द्र सिंह यादव  

  

रविवार, 16 मई 2021

एम्बुलेंस

शहर में बद-हवासी का आलम 

अस्पतालों-घरों में मातम ही मातम  

सड़कों पर दौड़तीं एम्बुलेंस

ऑक्सीजन लिए 

साँसों को जूझते करोना मरीज़ लिए   

घर से अस्पताल 

अस्पताल-दर-अस्पताल 

प्रतीक्षा करतीं कतार में 

साँसें थमीं तो दौड़ीं शमशान 

पूरी रफ़्तार में 

फिर प्रतीक्षा लंबी कतार में 

दौलत के भूखों का 

कुरूप चेहरा देखा 

इस लघु सफ़र में 

मानवीय संवेदना के किरदार भी 

लिख रहे हैं क्रूर काल के कपाल पर 

ख़ुद को दाँव पर रख 

साँसों की सच्ची कहानी! 

© रवीन्द्र सिंह यादव


गुरुवार, 6 मई 2021

दूर... दूर... 6 फ़ीट दूर!

 

दूर... दूर... 

6 फ़ीट दूर!

करोना ने फैलाया है 

क़दम-दर-क़दम 

फ़ितूर ही फ़ितूर 

वक़्त के क़हर में

हम हुए कितने मजबूर

हँसमुख बच्चे भी 

हुए गुमसुम 

बुज़ुर्गों की ख़ैरियत 

हुई कम-से-कम 

ऑक्सीजन देनेवालों का 

बढ़ा है गुरूर!

करोना के आगे 

खड़ा हूँ सेवा में हुज़ूर!  

© रवीन्द्र सिंह यादव  

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