किताब-ए-वक़्त में
क्या-क्या
और लिखा जाने वाला है
किसी को ख़बर नहीं
कुछ नक़्शे बदल जाएँगे
अगर बचे
झुलसने से
चिड़ियों के घोंसले
रहेंगे वहीं के वहीं
ढोएगी मानवता
महत्त्वाकाँक्षी मस्तिष्कों की
कुंठित अराजकता
मनुष्य का
भौतिकता में
जकड़ा जाना
वक़्त का सच है
बुज़ुर्गों की उपेक्षा
मासूमों पर
क्रूरतम अत्याचार
संस्कारविहीन स्वेच्छाचारिता
समाज का सच है।
©रवीन्द्र सिंह यादव
क्या-क्या
और लिखा जाने वाला है
किसी को ख़बर नहीं
कुछ नक़्शे बदल जाएँगे
अगर बचे
झुलसने से
चिड़ियों के घोंसले
रहेंगे वहीं के वहीं
ढोएगी मानवता
महत्त्वाकाँक्षी मस्तिष्कों की
कुंठित अराजकता
मनुष्य का
भौतिकता में
जकड़ा जाना
वक़्त का सच है
बुज़ुर्गों की उपेक्षा
मासूमों पर
क्रूरतम अत्याचार
संस्कारविहीन स्वेच्छाचारिता
समाज का सच है।
©रवीन्द्र सिंह यादव