बुधवार, 8 मई 2024

सोशल मीडिया

अभिव्यक्ति को विस्तार देने 

आया सोशल मीडिया,

निजता का अतिक्रमण करने 

आया सोशल मीडिया

धंधेबाज़ों को धंधा 

लाया सोशल मीडिया 

चरित्र-हत्या का माध्यम 

बना सोशल मीडिया 

ज्ञान,विमर्श और सूचना का 

अंबार लाया सोशल मीडिया 

छल,झूठ,धमकी,बदज़बानी

बलात्कार की धमकी और दम्भ को 

विस्तार देता सोशल मीडिया

स्त्रियों के लिए असुरक्षित बना 

सोशल मीडिया 

सोशल अर्थात सामाजिक 

सामाजिक माध्यम असामाजिक क्यों हो गया है? 

क्योंकि अब यह सत्ता से साँठगाँठ कर चुका है

कौन गाली लिख रहा है

कौन धमकी दे रहा है 

कौन नफ़रत और झूठ फैला रहा है

कौन क़ानून तोड़ रहा है 

कौन सामाजिक सद्भाव बिगाड़ रहा है  

सब जानती है सोशल मीडिया कंपनी 

धंधे के लिए इसे सब मंज़ूर है।

©रवीन्द्र सिंह यादव 


    

बुधवार, 28 फ़रवरी 2024

मूल्यविहीन जीवन

चित्र: महेन्द्र सिंह 


अहंकारी क्षुद्रताएँ 

कितनी वाचाल हो गई हैं 

नैतिकता को 

रसातल में ठेले जा रही हैं

 मूल्यविहीन जीवन जीने को 

उत्सुक होता समाज 

अपने लिए काँटे बो रहा है

अथवा फूल

यह तो समय देखेगा 

पीढ़ियों को कष्ट भोगते हुए

मूल्यविहीनता का क़र्ज़ उतारते हुए।  

©रवीन्द्र सिंह यादव

शुक्रवार, 19 जनवरी 2024

सर्दी

 

चित्र:महेन्द्र सिंह 

सर्दी तुम हो बलवान 

कल-कल करती नदी का प्रवाह 

रोकने भर की है तुम में जान

जम जाती है बहती नदी 

बर्फ़ीली हवाओं को तीखा बनाने 

आती हो निरीह को सहना सिखाने  

तुम जब कोहरे के पंख लेकर 

उतरती हो धरा पर 

दृष्टि क्षमता घट जाती है जीव की

चिड़िया भी उड़ नहीं पाती पर पसार कर   

अदृश्य हो जाते हैं भानु,शशि और सितारे

भौतिक जीवन चलता है तकनीक के सहारे 

एक ह्रदय है 

धड़-धड़ धड़कता रहता है जीवनभर अनवरत 

जमने नहीं देता धमनियों-शिराओं में बहता रक्त

इसके भी अपने मौसम हैं 

अंगों के सह-अस्तित्त्व को सहेजे  

कुछ मनचीते 

कुछ बोझिल-से!    

©रवीन्द्र सिंह यादव




शुक्रवार, 12 जनवरी 2024

भेड़ की ऊन

चित्र: महेन्द्र सिंह 

मासूम भेड़ की ऊन 

आधुनिक मशीनों से 

उतारी जा रही है

भेड़ की असहमति 

ठुकराई जा रही है

ज़बरन छीना जा रहा है   

सौम्य कोमल क़ुदरती कवच

है कैसा इंसानी बुद्धिमत्ता का सच   

तौहीन सहते-सहते 

गुज़ारेगी ठंड का मौसम 

कोसते काँपते-ठिठुरते हुए

कोई लुत्फ़ उठा रहा होगा

सर्दी के मौसम में इच्छित उष्णता का  

ऊनी रज़ाई ओढ़ते हुए!

 ©रवीन्द्र सिंह यादव

 

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