मंगलवार, 22 अक्तूबर 2024

फूल और काँटा

चित्र साभार: सुकांत कुमार 

SSJJ

एक हरी डाल पर 

फूल और काँटा 

करते रहे बसर

फूल खिला, इतराया 

अपने अनुपम सौंदर्य पर 

काँटा भी नुकीला हुआ,

सख़्त हुआ अभिमान से बेअसर 

उन्मादी हवा बही 

साएँ-साएँ सरसर-सरसर

काँटा हुआ पंखुड़ी के 

आरपार एक दोपहर 

धूप-बारिश की मार 

हुई धुआँधार गाँव-शहर 

तितली-भँवरे,कीट-पतंगे, 

रसिक कविवर 

गाते गुणगान फूल का 

मन भर कर

काँटा तो चुभन की 

पीड़ा देता चुभकर 

जिस फूल की रक्षा में 

काँटा झेलता रहा आलोचना जीभर 

वही एक दिन 

लगा किसी के हाथ 

और मुरझाया सेज पर सजकर

अब काँटा जी रहा 

एकाकी जीवन मन मार कर 

नियति-चक्र में 

फूल-काँटे साथ रहते 

विपरीत स्वभाव होकर

फूल-काँटे पनपते रहेंगे 

मौसमों की मार सहकर। 

 ©रवीन्द्र सिंह यादव    


6 टिप्‍पणियां:

  1. कोमलता और कठोरता का अद्भुत संयोग संदेश है प्रकृति का...विपरीत ध्रुवों के जादुई संसार में पनपे जीवन का हरपल काँटे और फूल की तरह खूबसूरत रंगों और कठिन परीक्षाओं से भरा रहेगा।
    गहन भाव लिए बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
    सादर।
    -----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २५ अक्टूबर २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  2. एकाकी जीवन मन मार कर
    नियति-चक्र में
    फूल-काँटे साथ रहते
    सुंदर स्वरूप
    आभार
    वंदन

    जवाब देंहटाएं
  3. जीवन ऐसे ही विरोधी तत्वों से बना है, सुंदर सृजन

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत अनोखा दृष्टिकोण। सच है, पर कोई इस तरह सोचता नहीं।

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणी का स्वागत है.

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