उस दिन
वह शाम
काले साये में लिपटती हुई
रौशनी से छिटकती हुई
तमस का लबादा लपेटे
जम्हाइयाँ लेती नज़र आयी थी
तभी गुलशन से अपने बसेरे को
लौटती नवयुवा तितली
उत्साही दुस्साहस की सैर
की राह पर चल पड़ी
राह भटकी तो
भूखे वीरान खेतों की
मेंड़ों से होकर जाती
क्षत-विक्षत पगडंडी पर
चल पड़ी
बाँसों के झुरमुट से
आ रहे थे हवा के अधमरे झोंके
वाहियात सन्नाटा
दिमाग़ के किवाड़ों की खड़खड़ाहट
चंचल हवा की फिसलन से
डरावना माहौल सृजित कर रहा था
शहर की तरफ़ आते
सियार से राब्ता हुआ
सड़ांध मारते पिंजर को
मौक़ा पाकर मुँह मारते
कौए, कुत्ते, सियार और गिद्ध से
न चाहते मुक़ाबिल हुई
अपने डैने फैलाकर शिकार पर
आँखें गढ़ाती बाज़ की हिंसक नज़र
तोते के बच्चे चहचहाते मिले
शुष्क ठूँठों के कोटरों से झाँकते
तितली सहम गयी
जब उसने सुनी
एक दिल दहलाती चीख़
आक्रोश में सराबोर चीत्कार
कुछ बहसी दरिंदे
अपने-अपने सर ढाँपकर
अप्राकृतिक कृत्य करते मिले
तितली रुकी और अपना
विचारों का ख़ुशनुमा रोमाँचक सफ़र
अधूरा छोड़ / गरिमा से आहत हो
लौट आयी शहर की ओर
सीधे पुलिस-थाने पहुँची
जहाँ चल रही थी दारु-पार्टी
थकी-हारी अलसाई तितली
बैठ गयी दीवार पर
याचना का भाव लेकर
ख़तरों से चौकन्ना होकर
छिपकली ने छलाँग लगायी
तितली जैसे रंगीन शिकार पर
औंधे मुँह जा गिरी
मेवा मिश्रित नमकीन की प्लेट में
पार्टी का मज़ा किरकिरा हुआ
दीवार पर सहमी चिपकी
एक पुलिसमैन की आँखें
टिक गयीं मासूम तितली पर
तितली ने भी अपनी दारुण याचना
उन सच्ची आँखों में उड़ेल दी
सम्मोहित किया पुलिसमैन को
उसने मोबाइल निकाला
वीडियो सूट करता हुआ
तितली का अनुसरण करता हुआ
पहुँचा घटनास्थल पर
और ख़ुद को कोसने लगा
तितली को मन ही मन नमन किया
धन्यवाद किया
क़ानून के हाथ लंबे होते हैं
यह जताने के लिये / सोया ज़मीर जगाने के लिये!
© रवीन्द्र सिंह यादव