गुरुवार, 27 फ़रवरी 2020

हाइकु

 1. 
जलती बस्ती~ 
खड़ा है लावारिस 
संतरा-ठेला। 

2. 
दंगे में तख़्ती~ 
एक सौ पचास है 
दूध का भाव। 

3. 
संध्या की लाली~
क्षत-विक्षत लाश 
चौपाल पर। 

4. 
अर्द्ध-यामिनी~ 
जलते घरोंदों में 
इंसानी शव। 

5. 
भोर की लाली~ 
गली में ईंट-रोड़े  
भीड़ के हाथ।  
 
© रवीन्द्र सिंह यादव 

9 टिप्‍पणियां:

  1. दंगे तो ज़ोरदार हुए लेकिन अभी क़त्ले-आम बाक़ी है.

    जवाब देंहटाएं
  2. दंगों की पृष्ठभूमि में सटीक हाइकू सृजन..।

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 27 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  4. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (28-02-2020) को धर्म -मज़हब का मरम (चर्चाअंक -3625 ) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    *****
    आँचल पाण्डेय

    जवाब देंहटाएं
  5. लाजवाब हायकु...
    वाह!!!

    जवाब देंहटाएं
  6. हाइकू की आपकी ये कलेक्शन गजब की है रवींद्र जी

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणी का स्वागत है.

विशिष्ट पोस्ट

अभिभूत

बालू की भीत बनाने वालो  अब मिट्टी की दीवार बना लो संकट संमुख देख  उन्मुख हो  संघर्ष से विमुख हो गए हो  अभिभूत शिथिल काया ले  निर्मल नीरव निर...