1.
जलती बस्ती~
खड़ा है लावारिस
संतरा-ठेला।
2.
दंगे में तख़्ती~
एक सौ पचास है
दूध का भाव।
3.
संध्या की लाली~
क्षत-विक्षत लाश
चौपाल पर।
4.
अर्द्ध-यामिनी~
जलते घरोंदों में
इंसानी शव।
5.
भोर की लाली~
गली में ईंट-रोड़े
भीड़ के हाथ।
भीड़ के हाथ।
© रवीन्द्र सिंह यादव
दंगे तो ज़ोरदार हुए लेकिन अभी क़त्ले-आम बाक़ी है.
जवाब देंहटाएंदंगों की पृष्ठभूमि में सटीक हाइकू सृजन..।
जवाब देंहटाएंसुन्दर हाइकु
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 27 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (28-02-2020) को धर्म -मज़हब का मरम (चर्चाअंक -3625 ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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आँचल पाण्डेय
लाजवाब हायकु...
जवाब देंहटाएंवाह!!!
बहुत बढ़िया।
जवाब देंहटाएंहाइकू की आपकी ये कलेक्शन गजब की है रवींद्र जी
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