समाचार आया है -
"अदालत ने हत्या के अपराधी की कविताएँ पढ़कर मौत की सज़ा को आजीवन कारावास में बदला"
सर्वोच्च न्यायालय का
न्याय सुनो
मख़मली भावों की
ख़ूबसूरत क़ालीन बुनो
22 वर्ष की आयु में
मासूम बच्चे का अपहरण
फिर हत्या कर डाली
क़ानून के लम्बे हाथों ने
ले गिरफ़्त में
बेड़ियाँ कसकर डालीं
उच्च न्यायालय से
फाँसी का
फ़रमान हुआ
अपराधी घबराकर
हलकान हुआ
रेयरेस्ट ऑफ़ द रेयर/
दुर्लभ से दुर्लभतम मामला
आख़िरी अदालत तक आ पहुँचा
18 साल कारावास में रहकर
पढ़ते-पढ़ते बी.ए. तक आ पहुँचा
पश्चाताप और प्राश्यचित की
ज्वाला में धधक उठा
कल्मष हृदय से साफ़ हुआ
संवेदना का परिंदा चहक उठा
सृजन की
रसमय निर्मल रसधार बही
हृदय परिवर्तन की
मर्मस्पर्शी बयार बही
आत्मग्लानि आत्मवंचना से
उबरूँ कैसे
उमड़े विचार
कैसे-कैसे
अपराधी की क़लम ने
रच डाला कविताओं का सुन्दर संसार
छूआ न्यायाधीशों के मर्म को बार-बार
सज़ा-ए-मौत
आजीवन कारावास में तब्दील हुई
कविता और न्याय की
सुरभित गरिमा
अपराधी को फ़ील हुई।
© रवीन्द्र सिंह यादव
पाठकों से अपील: इस रचना को एक अबोध बच्चे के हत्यारे का महिमामंडन न समझा जाय बस कविता के महत्त्व पर विचार किया जाय।
"अदालत ने हत्या के अपराधी की कविताएँ पढ़कर मौत की सज़ा को आजीवन कारावास में बदला"
सर्वोच्च न्यायालय का
न्याय सुनो
मख़मली भावों की
ख़ूबसूरत क़ालीन बुनो
22 वर्ष की आयु में
मासूम बच्चे का अपहरण
फिर हत्या कर डाली
क़ानून के लम्बे हाथों ने
ले गिरफ़्त में
बेड़ियाँ कसकर डालीं
उच्च न्यायालय से
फाँसी का
फ़रमान हुआ
अपराधी घबराकर
हलकान हुआ
रेयरेस्ट ऑफ़ द रेयर/
दुर्लभ से दुर्लभतम मामला
आख़िरी अदालत तक आ पहुँचा
18 साल कारावास में रहकर
पढ़ते-पढ़ते बी.ए. तक आ पहुँचा
पश्चाताप और प्राश्यचित की
ज्वाला में धधक उठा
कल्मष हृदय से साफ़ हुआ
संवेदना का परिंदा चहक उठा
सृजन की
रसमय निर्मल रसधार बही
हृदय परिवर्तन की
मर्मस्पर्शी बयार बही
आत्मग्लानि आत्मवंचना से
उबरूँ कैसे
उमड़े विचार
कैसे-कैसे
अपराधी की क़लम ने
रच डाला कविताओं का सुन्दर संसार
छूआ न्यायाधीशों के मर्म को बार-बार
सज़ा-ए-मौत
आजीवन कारावास में तब्दील हुई
कविता और न्याय की
सुरभित गरिमा
अपराधी को फ़ील हुई।
© रवीन्द्र सिंह यादव
पाठकों से अपील: इस रचना को एक अबोध बच्चे के हत्यारे का महिमामंडन न समझा जाय बस कविता के महत्त्व पर विचार किया जाय।
बहुत सुन्दर कविता !
जवाब देंहटाएंएक और वाल्मीकि जन्मा !
फिर से 'रामायण' की रचना हुई !
पश्चाताप की पीड़ा में पिघलकर हत्यारे की वेदना कविता बनकर बही..... नए जनम में प्रवेश का सुंदर शब्दांकन।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना आज ," पाँच लिंकों का आनंद में " बुधवार 13 मार्च 2019 को साझा की गई है..
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in/
पर आप भी आइएगा..धन्यवाद।
रसमय रसधार बही
जवाब देंहटाएंहृदय परिवर्तन की
मर्मस्पर्शी बयार बही
आत्मग्लानि आत्मवंचना से
उबरूँ कैसे
उमड़े विचार... बेहतरीन प्रस्तुति आदरणीय
सादर
भावनाओं का विशेष परिस्थितिवश नकारात्मक हो जाना मानव की सबसे बड़ी कमजोरी है, और एकांत में मनन उसे फिर कोमल भावों में ला सकता है तभी तो कहते हैं मानव कब देव विचारों में जा बैठे और कब गीर कर दानव बन बैठे कोई नही कह सकता इसलिए निज पर संयम शाशन फिर अनुशासन।
जवाब देंहटाएंसार्थक सारगर्भित रचना।
साधुवाद।
कविता बढ़िया लिखी। पश्चाताप की अग्नि में जलकर मनुष्य का नया जन्म होता है। सादर।
जवाब देंहटाएंमार्मिक और प्रेरणादायक रचना ,सादर नमस्कार
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