कहीं बादल रहे उमड़
कहीं आँधी रही घुमड़
अब आ गयी धूप
चुभती चिलचिलाती
अब सूखे कंठ से
चिड़िया गीत न गाती
कोयल को तो मिल गया
आमों से लकदक बाग़
कौआ ढूँढ़ रहा है मटका
गाता फिरे बेसुरा राग
चैतभर काटी फ़सल
बैसाख में खलिहान
आसमान को ताकता
बेबस निरीह किसान
आसमान को ताकता
बेबस निरीह किसान
बदला रुख़ आसमान का
आँधी-पानी का हो-हल्ला
उड़ जाता भूसे का ढेर
गीला होता सारा गल्ला
आँधियाँ ले लेती हैं
कितनों की जान
आँधियाँ ले लेती हैं
कितनों की जान
क़ुदरत कब होगी मेहरबाँ?
कठिन दौर में होता अक़्सर
क्यों मौसम भी बेईमान ?
#रवीन्द्र सिंह यादव
#रवीन्द्र सिंह यादव
शब्दार्थ / WORD MEANINGS
खलिहान = वह स्थान जहाँ फ़सल को काटकर एकत्र किया जाता है / BARN
गल्ला = अनाज , अन्न / FOOD GRAINS
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