बहुत ख़ूब कहा है तुमने मित्र ! हमारी 16 रील की फ़िल्मों में खलनायक 15 रील तक मज़े करता है और हीरो को पीटता रहता है और आख़री रील में जा कर मारा जाता है. भारतीय लोकतंत्र में तो खलनायक के मरने के तीस साल बाद ही उसका कच्चा-चिटठा खोला जा सकता है और तभी उसकी राजनीतिक मौत भी होती है. तो इस कहानी से हमको यह सबक मिलता है कि जब तक है कुर्सी, तब तक लूट-मार में लगे रहो.
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना बुधवार १४ दिसंबर २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
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आपकी लिखी रचना बुधवार १४ दिसंबर २०२२ के लिए साझा की गयी है
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बहुत ख़ूब कहा है तुमने मित्र !
जवाब देंहटाएंहमारी 16 रील की फ़िल्मों में खलनायक 15 रील तक मज़े करता है और हीरो को पीटता रहता है और आख़री रील में जा कर मारा जाता है.
भारतीय लोकतंत्र में तो खलनायक के मरने के तीस साल बाद ही उसका कच्चा-चिटठा खोला जा सकता है और तभी उसकी राजनीतिक मौत भी होती है.
तो इस कहानी से हमको यह सबक मिलता है कि जब तक है कुर्सी, तब तक लूट-मार में लगे रहो.
व्वाहहहहहहहहह
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
सादर
बेहतरीन रचना।
जवाब देंहटाएंलाजवाब रचना
जवाब देंहटाएंविचारणीय
जवाब देंहटाएंइतिहास गवाह रह्ता है हर सम सामयिक विकृति का।भावी पीढियाँ आँकेगी आज का इतिहास।सार्थक रचना आदरनीय रवींद्र जी।सादर 🙏
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