सोमवार, 4 जुलाई 2022

गुलमेहंदी,जूही और गेंदा

नीले फूलों लदी  

गर्वीली गुलमेहंदी  

की 

मोहक मुस्कान 

मानसिक थकान को 

सोख न सकी 

तब 

तिरस्कार की चुभन 

तीव्र करती  

श्वेत सुमन के साथ 

इतराने लगी जूही

अंततः 

केसरिया पुष्प धारण किए 

आत्मविस्मृत 

एकाकीपन में गुम गेंदे ने 

उपेक्षा की दहलीज़ पर 

स्वयं को समर्पित किया 

क्षितिज पर दृष्टि गढ़ाए 

कोई बढ़ गया आगे 

कोमल फूलों को कुचलता हुआ!

किसी ने देखा... 

मासूम महकता फूल 

अनिच्छा से मिट्टी में मिलता हुआ?

© रवीन्द्र सिंह यादव  

   

15 टिप्‍पणियां:

  1. ओह , सोचने पर मजबूर करती रचना

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ८ जुलाई २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  3. लाचार स्तब्ध देख रहे सभी

    बैचैन करती रचना

    जवाब देंहटाएं
  4. मन को मथती अच्छी कविता

    जवाब देंहटाएं
  5. अद्भुत बिम्ब लिए सोचने पर मजबूर करती कृति ।

    जवाब देंहटाएं
  6. ऐसी संवेदनहीनता ही हिंसा को जन्म देती है

    जवाब देंहटाएं
  7. अनुज रविन्द्र जी ,मन को अंदर तक झकझोर गई आपकी रचना ।

    जवाब देंहटाएं
  8. उफ्फ...बेहद मार्मिक पंक्तियाँ। इन पुष्पों के माध्यम से आपने यह सत्य उजागर कर दिया कि हम मनुष्यों की संवेदना सुप्तावस्था में है। इन सुप्त संवेदनाओं को झकझोर कर जगाने का प्रयास करती आपकी इन पंक्तियों को और आपको मेरा सादर प्रणाम आदरणीय सर।🙏

    जवाब देंहटाएं
  9. जो बदकिस्मत इस जनम में कुचले जाते हैं वो अगले जनम में भी कुचले जाने के लिए पैदा होते हैं और जो अपने इस जनम में लोगों को कुचलते हैं वो अगले जनम में भी आक़ा बनने के लिए ही अवतरित होते हैं.

    जवाब देंहटाएं
  10. फूलों के माध्यम से बहुत गहरा संदेश देती कविता
    सादर

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  11. बहुत भावपूर्ण रचना, बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  12. अद्भुत बिम्बों के साथ बहुत ही हृदयस्पर्शी
    विचारणीय सृजन ।

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणी का स्वागत है.

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