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रविवार, 24 अप्रैल 2022

नासूर

वो जो आप 
दूसरों की 
तबाही
देख  
आहें-चीख़ें
बेबस चीत्कार  
सुन 
मन ही मन 
ख़ुश हो रहे हो 
सदियों पुरानी
कुंठा का
नासूर 
सहला रहे हो!
लानत है 
आपके
सभ्य होने पर 
सामाजिक मूल्य
खोकर जीने पर!

© रवीन्द्र सिंह यादव