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नवोदित पीढ़ी
कुछ दशकों बाद
पहचान लेगी
उसके दिल में
नफ़रत और हिंसा के बीज
किसने रोपे थे
उसके भविष्य के लिए
देश-विदेश में
काँटे किसने बोए थे
तब तक
हमारे हृदय की तरह
गंगा के तट
और सिकुड़ चुके होंगे...
और प्रौढ़ पीढ़ी के लोग
शर्म से निरुत्तर
नज़रें झुकाए खड़े होंगे।
© रवीन्द्र सिंह यादव