तुम्हें घोड़े को
रथ में जोतना था
तुम्हें उससे
ताँगा खिंचवाना था
तुम्हें उस पर सवार हो
युद्ध लड़ने थे
तुम्हें उस पर सवार हो
पहाड़ चढ़ने थे
तुम्हारे अपने शौक
और विवशताएँ थीं
घोड़े की अपनी
क्या-क्या लालसाएँ थीं...
ककरीली-पथरीली ज़मीन पर
तेज़ रफ़्तार से दौड़ते-दौड़ते
उसके खुर लहूलुहान न हों
तुम्हारे लक्ष्य में व्यवधान न हो
तो तुमने ठोक दीं
या ठुकवा दीं
लोहे की सख़्त नालें
घोड़े के खुरों में!
दर्दनाक!
और तुम ख़ुद को
सभ्य कहते हो?
संवेदनशील होने का
सुसज्जित ढोंग करते हो!
शर्मनाक!
© रवीन्द्र सिंह यादव