कल-कल करती
निर्मल नदी को देखो
गतिमान है मुहाने की ओर
सूरज की तपिश
संलग्न है
नदी की काया को
छरहरा बनाने की ओर
नदी आशांवित होती है
पहुँचने मुहाने तक
सागर में मिलने हेतु
आगे मिल जाएँगीं
समा जाएँगीं
कुछ और छोटी-छोटी नदियाँ
उसकी जलराशि और सौंदर्य में इज़ाफ़ा करने
नदी उनका
तिरस्कार नहीं करती है
आह्लादित होती है
संगम और समंवय के साथ
मनुष्य,पशु-पक्षियों,पेड़-पौधों का
सुकून में बदलता है
प्यास का एहसास
देखकर बहती निर्मल नदी
लगे अंकुश मानवीय महत्वाकांक्षाओं पर
तो बहती रहे नदी
अविरल,अविचल,अविकल,अनवरत
सदी-दर-सदी कल-कल छल-छल।
©रवीन्द्र सिंह यादव