गमलों में पेड़ लगाकर
आत्ममुग्ध होता समाज
व्यथित है
सूरज की प्रचंड तपिश से
हाँ, बदलेगा वातावरण
बड़ी होती इस कोशिश से
पेड़ की जड़
खींचती जल भूतल से
पहुँचाती आँतरिक वाहिनियों के ज़रिये
पत्ती के स्टोमेटा तक
वाष्पोत्सर्जन वातावरण को देता ठंडक
छाया में आती राहत की ठसक
जो सूख गया या काटा गया पेड़
तो देखा गया जलते हुए
सर्दी के अलाव में
या घर की शोभा बनते हुए
पेड़ तो स्वयं उगते हैं
सजते-सँवरते हैं वन-उपवन होकर
कुदृष्टि आदमी की उजाड़ती है वृक्ष
अति भौतिकता का दास होकर
उजड़ते वन बसती बस्तियाँ
बढ़ता वातावरण का तापमान
जीवन के लिए ख़तरा
वृक्षों को जबरन मुक्ति देता आदमी
कभी झाँक लेगा अपने भीतर
रोते-सिसकते मिलेंगे
चिड़िया,कोयल,मोर,बटेर,तीतर।
©रवीन्द्र सिंह यादव