गमलों में पेड़ लगाकर
आत्ममुग्ध होता समाज
व्यथित है
सूरज की प्रचंड तपिश से
हाँ, बदलेगा वातावरण
बड़ी होती इस कोशिश से
पेड़ की जड़
खींचती जल भूतल से
पहुँचाती आँतरिक वाहिनियों के ज़रिये
पत्ती के स्टोमेटा तक
वाष्पोत्सर्जन वातावरण को देता ठंडक
छाया में आती राहत की ठसक
जो सूख गया या काटा गया पेड़
तो देखा गया जलते हुए
सर्दी के अलाव में
या घर की शोभा बनते हुए
पेड़ तो स्वयं उगते हैं
सजते-सँवरते हैं वन-उपवन होकर
कुदृष्टि आदमी की उजाड़ती है वृक्ष
अति भौतिकता का दास होकर
उजड़ते वन बसती बस्तियाँ
बढ़ता वातावरण का तापमान
जीवन के लिए ख़तरा
वृक्षों को जबरन मुक्ति देता आदमी
कभी झाँक लेगा अपने भीतर
रोते-सिसकते मिलेंगे
चिड़िया,कोयल,मोर,बटेर,तीतर।
©रवीन्द्र सिंह यादव
वाह! अनुज रविन्द्र जी ,बहुत सही कहा आपनें । सच में हम इंसान अपनें अपनें स्वार्थ के आगे न कुछ देखते हैं न समझनें की कोशिश ही करते हैं ।
जवाब देंहटाएंमनुष्यों के स्वार्थपरता से
जवाब देंहटाएंचिंतित ,त्रस्त, प्रकृति के
प्रति निष्ठुर व्यवहार से आहत
विलाप करती
पृथ्वी का दुःख
सृष्टि में
प्रलय का संकेत है।
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बेहद गंभीर विषय पर मनन करने का संदेश देती सारगर्भित अभिव्यक्ति।
सादर
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार १८ जून २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
व्वाहहह
जवाब देंहटाएंपेड़ तो स्वयं उगते हैं
शानदार
आभार
सादर
सटीक
जवाब देंहटाएंहमें काटो मत
जवाब देंहटाएंबस!
कर लेंगे खुद
इंतजाम
अपने उगने का।
उगेंगी
संततियां, तुम्हारी भी,
साथ साथ!!!
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंखूबसूरत प्रस्तुति आदरणीय।
जवाब देंहटाएंगमलों में पेड़ लगाकर
जवाब देंहटाएंआत्ममुग्ध होता समाज
व्यथित है
सूरज की प्रचंड तपिश से
पेड़ों का महत्व ही जैसे भूल गया मानव वातानुकूलित घर बनाकर स्वयं को सर्वोपरि समझ बैठा... इस बार की गर्मी जैसे मनुष्य का दम्भ मिटाकर ही मानेगी...
बढते तापमान पर सबकोआगाह करती बहुत ही सार्थक एवं सटीक रचना।
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसार्थक सारगर्भित सृजन हार्दिक बधाई सुलेखनी को।
जवाब देंहटाएंप्रकृति के बदलते मिजाज और आने वाले भविष्य की मुश्किलों पर सावधान करती सटीक रचना
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