ईवीएम के समाचार पढ़कर
मुझे स्मरण हो आते हैं शकुनि के प्रबल पासे
वे सत्ता-संपत्ति के नहीं बल्कि थे रक्त के प्यासे
द्रौपदी द्वारा दुर्योधन का उपहास
बन गई गले की चुभनभरी फाँस
शक्ति,साधन,मर्यादा,दर्प और ऐश्वर्य
शकुनि के पासों के आगे नत-मस्तक
छल बल है निरपराध के लिए घातक
नियम पालन की नैतिकता से बँधे रहे महारथी चुपचाप
स्त्री-गरिमा होती तार-तार देखते रहे शीश झुकाए क्रूरता का वीभत्स नाच
इतिहास का असहज सत्य
तबाही के उपरांत आ खड़ा होता है
कहता है-
छल आश्रय लेता है
सहसा अनैतिकता के भंडार में!
©रवीन्द्र सिंह यादव