दोपहर बनकर
अक्सर न आया करो,
सुबह-शाम भी
कभी बन जाया करो।
चिलचिलाती धूप में
तपना है दूर तक,
कभी शीतल चाँदनी
में भी नहाया करो।
सुबह-शाम भी
कभी बन जाया करो।
सुबकता है दिल
यादों के लम्बे सफ़र में,
कभी ढलते आँसू
रोकने आ जाया करो।
सुबह-शाम भी
कभी बन जाया करो।
बदलती है पल-पल
चंचल ज़िन्दगानी,
हमें भी दुःख-सुख में
अपने बुलाया करो।
सुबह-शाम भी
कभी बन जाया करो।
दरिया का पानी
हो जाय न मटमैला,
झाड़न दुखों की धारा में
यों न बहाया करो।
सुबह-शाम भी
कभी बन जाया करो।
#रवीन्द्र सिंह यादव
#रवीन्द्र सिंह यादव
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (0६ -१०-२०१९ ) को "बेटी जैसा प्यार" (चर्चा अंक- ३४८०) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएं