जब
वातावरण में
समाहित वाष्प को
सिकोड़ देती है सतह की ठंडक,
तब
शबनम के दाने / ओस के मोती,
फूल-पत्तियों पर आसन जमाते हैं,
हमारे मरने-मिटने के भय को लजाते हैं।
मुनिया समझदार हुई,
पाँच बसंत पार हुई,
बोली एक इतवार को-
"पार्क में मैं भी चलूँगी,
कुलाँचें मैं भी भरूँगी...!"
सवालों-जवाबों के बीच पहुँचे पार्क,
चमका रही थीं ओस-कणों को,
भोर की मनहर रवीना,
ये क़ुदरत के आँसू हैं या पसीना...?
कवितामयी / छोटे मुँह बड़ी बात...!
सीधा मन-मस्तिष्क पर लुभावना आघात।
मैंने कहा-
यह ओस है,
उसने कहा-
"ENGLISH में बताओ"
"DEW...!" -जवाब मैंने दिया,
इसे तो मेरे टीचर ने वीडियो में दिखाया था...
सुनकर मेरे सपनों पर ओस पड़ गयी!
घर आते-आते सारी ओस झड़ गयी!!
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(१६-११ -२०१९ ) को " नये रिश्ते खोजो नये चाचा में नया जोश होगा " (चर्चा अंक- ३५२१) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
सुन्दर तस्वीरों के साथ बहुत ही खूबसूरत रचना...
जवाब देंहटाएंओस!!!आँसू या पसीना... और मुनिया के मासूम सवालों से सजी लाजवाब कृति
वाह!!!