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शुक्रवार, 10 मार्च 2017

आयी राम की अवध में होली



आयी   राम    की

अवध   में    होली ,

छायी  कान्हा  की

बृज    में   रंगोली।



पक   गयी  सरसों

बौराये    हैं   आम,

मनचलों  को  अब

सूझी   है  ठिठोली।

छायी   कान्हा  की


बृज    में   रंगोली।



भाये       मन      को

रंग    अबीर   गुलाल ,

मस्ताने    बसंत    में

कूक  कोयल   बोली।

छायी    कान्हा    की

बृज      में     रंगोली।





मिट     गये    मलाल

मलने     से   गुलाल,                                                                                                                                         
भरी मायूस मन  की

ख़ुशियों   ने   झोली।

छायी    कान्हा   की

बृज     में     रंगोली।













खेलो     होली    बन


राधा     नन्द - लाल ,


पिचकारी    ने    बंद


राह    अब     खोली।


छायी     कान्हा   की


बृज      में      रंगोली।




@रवीन्द्र  सिंह यादव


इस रचना  का यू-ट्यूब पर  (चैनल - MERE SHABD--SWAR) लिंक -https://youtu.be/ufs7srNvtAU

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (17-10-2019) को   "सबका अटल सुहाग"  (चर्चा अंक- 3492)     पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।  
    --
    अटल सुहाग के पर्व करवा चौथ की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ 
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. होली के रंगों से सजी अनुपम रचना ।

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणी का स्वागत है.