भिखारी बनाने पर तुला है पूँजीवाद,
सिसकियाँ भर रहा है समाजवाद।
इतिहास के नाज़ुक मोड़ पर
खड़े होकर हम
भूमंडलीकरण को कोस रहे हैं,
देख भूखे पेट सोतों को
अपना मन मसोस रहे हैं।
युद्धग्रस्त देशों में
भूख का तांडव
पिघलाता नहीं अब दिल हमारा,
आक्रोश और क्षोभ से भरा मन
अब असहाय के लिए खोलता नहीं सहयोग का पिटारा।
आच्छादित है मानवीय - संवेदनाओं पर
स्वार्थ का मज़बूत आवरण,
थाम लेता है बार-बार
मूल्यों का होने से जागरण ।
बढ़ती ग़ैर -बराबरी ,
सामाजिक - ध्रुवीकरण,
अब ,
ग़रीब -अमीर के बीच स्थापित
कालजयी खाई को और चौड़ा कर रहे हैं,
पूँजीवाद का विकराल रूप प्रकट हो गया है ,
दुनिया की आधी संपत्ति पर 8 धनकुबेरों का कब्ज़ा हो गया है ,
भारत में अब 1% लोगों का देश की 58% संपत्ति पर कब्ज़ा हो गया है।
आजीविका के लिए हर दिन
संघर्ष करने वाला
हाथ मल रहा है ,
सरकारों का सत्ता में बने रहने की चिंताओं का दौर चल रहा है।
सरकारें संचालित हैं ,
धनकुबेरों की मंशा से,
ज़ेबें हमारी काटने के क़ानून उनसे बनवा रहे हैं,
भूख से तीसरी दुनिया के देश हार रहे हैं ,
विकसित देश बेशर्मी से बेच हथियार रहे हैं।
ग़रीब को मिले
डॉक्टर ,दवा , रोटी, शिक्षा और छत ,
ख़त्म हो शोषण - कुपोषण का चक्रव्यूह,
छूट जाय नशे की लत।
पूँजी का ध्रुवीकरण रुके ,
राष्ट्रीय संपत्ति का समान बँटबारा हो ,
पूँजी का विकेन्द्रीकरण हो ,
बाज़ारवाद के मकड़जाल को समझें ,
अनावश्यक शौक पर हमारा नियंत्रण हो।
कर सुधार हो,
ख़त्म भ्रष्टाचार हो ,
हर हाथ को काम हो ,
मेहनत का उचित दाम हो ,
श्रम ,श्रमिक-उत्पाद और फसल का उचित मूल्य हो ,
एकता अमूल्य हो ,
बच पाएंगे तब हम,
पूँजीवाद के आगे घुटने टेकने से ...... ।
समन्वित वैश्विक उपाय,
समानता के विचार की खाद,
आक्रोश और पीड़ा से उपजी आह ,
उबार लेंगे मानवता को अंधी सुरंग में जाने से।
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