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मंगलवार, 19 सितंबर 2017

आँखें


ख़ामोश अदा चेहरे की,

व्यंगपूर्ण मुस्कान 

या 

ख़ुद को समझाता तसल्ली-भाव....?

आज आपकी डबडबाई आँखों में 

आयरिस के आसपास,

तैरते हुए चमकीले मोती देखकर.....

मेरे भीतर भी 

कुछ टूटकर बिखर-सा गया है......!  



ज़ार-ज़ार रोती आँखें 

मुझे भाती नहीं,

आँखें हैं कि

शिकायती-स्लेट बनने से 

अघाती नहीं। 


आपका कभी आँचल भीगता है 

कभी  मेरा  रुमाल,

बह जायें आँसू फिर देखिये 

चंचल नयनों के कमाल। 



दिल किसी का

यादें किसी की, 

सपने किसी के 

आँख किसी की,

इंतज़ार किसी का 

धड़कन किसी की,  

चैन किसी का 

बेक़रारी किसी की,

अक्स किसी का 

आँख किसी की, 

दिल में समायी प्रीत किसी की 

कहो कैसा क़ुदरती अनुबंध है?


किसी दामन में सर झुकाकर 

सुकूं मिलता है भरी आँखों को,

क़लम कहाँ लिख पाती है  

 पाकीज़गी-ए-अश्क़ के उन ख़्यालों को।   


आप मेरे दिल में उतरे 

मैं  आपके  दिल  में,

गुफ़्तुगू  ख़ूब  हुई 

दो दिलों की महफ़िल में, 

तड़प के सिवाय कुछ मिला क्या....?

खनकते एहसास लिये  

तमन्नाओं का हसीं कारवाँ मिला,

तभी तो चल पड़ा 

इश्क़ का नाज़ुक-सा सिलसिला। 


मैं अपनी गुस्ताख़ी  

ढूँढ़कर  ही  रहूँगा, 

ख़ज़ाना-ए-दिल बहने का 

सबब तलाश कर ही लूँगा, 

क्योंकि आपने 

आज मुझे टफ टास्क दिया है -

"दिल में ऐसा क्या चुभता है 

कि ज़ुबाँ चुप रहती है,

आँखें बयाँ करती हैं?"



कब से हम खुलकर  मुस्काये नहीं 

गये वक़्त की रुस्वाइयाँ  बयां करती हैं,

चेहरे  पर उदासी का पहरा 

और झुकी-झुकी पलकें 

बे-रूखी का क़िस्सा बयां करती हैं। 



है  हार  क़ुबूल  मुझे

नहीं मैं अना-पसंद 

रणछोड़दास जी का 

पथ अनुगमन करता हूँ,

चेहरे पर खिली तबियत हो  

ईष्ट  को  नमन  करता  हूँ।  

बस यही दुआ और इल्तिजा करता हूँ-

ज़िन्दगी को जीभर खिलने-मुस्कराने दो अब,

सपनों में भी आँसुओं को  न ज़ाया  होने दो अब। 

#रवीन्द्र सिंह यादव 

शब्दों के अर्थ /पर्यावाची / WORD  MEANING 

आयरिस =आँख की पुतली / IRIS / PUPIL 

पाकीज़गी-ए-अश्क़= आँसुओं  की पवित्रता / PURITY OF TEARS 

ख़ज़ाना-ए-दिल= आँसू / TEARS 

गुस्ताख़ी  =ढिठाई , बे-अदबी ,अशिष्टता /ARROGANCE 

टफ  टास्क= कठिन, चुनौतीभरा  कार्य / TOUGH TASK 

रुस्वाइयाँ= बदनामियाँ / DISGRACES 

अना-पसंद = अहंकारवादी ,अहंवादी, अपने अहंकार को आगे रखने वाला  / Egotist 

रणछोड़दास =श्रीकृष्ण / LORD KRISHNA 

ज़ाया = बरबाद ,नष्ट, नाश  / WASTE / DESTROY  


6 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय रविन्द्र जी ---- आपके काव्य का ये रोमानी रंग बेहद खूबसूरत है | सारी रचना में आलौकिक भावों की सरस धरा निसृत हो मन को छू रही है | बड़ी ही सरलता
    से ------ क्या खूब लिखा आपने -----------
    किसी दामन में सर झुकाकर
    सुकूं मिलता है भरी आँखों को ,
    क़लम कहाँ लिख पाती
    पाकीज़गी-ए-अश्क़ के उन ख़्यालों को।

    सचमुच शुचिता से भरे प्रेम की परिभाषा को लिखने में आज तक कोई भी कलम सक्षम नहीं हुई है | औरइस प्रेम को समर्पित पावन अश्रुधारा का कहाँ कोई सानी !!!! सदियों से अपरिभाषेय इस भावना का एक रंग आपकी रचनात्मकता से छलका है |
    हार कर प्रेम आलौकिक हो जाता है | इस हार में प्रेम की विजय है | बहुत सुंदर लाजवाब पंक्तियाँ -- मुक्त कंठ से सराहने योग्य है |
    सादर ---- शुभकामना

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  2. जी नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना गुरुवार २५ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  3. आदरणीय आप की लेखनी का करुण भाव मन को छू लेता है
    बेहतरीन रचना और बेहतरीन लेखन है आप का
    सादर

    जवाब देंहटाएं

  4. है हार क़ुबूल मुझे

    नहीं मैं अना-पसंद

    रणछोड़दास जी का

    पथ अनुगमन करता हूँ ,
    अतिव सुंदर
    प्रेम में पूर्णतया समर्पित
    भावप्रवण रचना 👌 👌 👌

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  5. किसी दामन में सर झुकाकर
    सुकूं मिलता है भरी आँखों को ,
    क़लम कहाँ लिख पाती
    पाकीज़गी-ए-अश्क़ के उन ख़्यालों को।
    वाह!!!!
    बहुत ही लाजवाब रचना कुछ अलग ही अंदाज में...बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं इस उत्कृष्ट सृजन के लिए....।

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