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मंगलवार, 26 सितंबर 2017

अपनी अस्मिता क़ुर्बान करनी चाहिए थी ?

कुलपति साहब तो क्या 
उस छात्रा को 
संस्थान की अस्मिता के लिए 
अपनी अस्मिता 
क़ुर्बान करनी चाहिए थी?
बीएचयू  के मुखिया को 
ऐसी बयानबाज़ी करनी चाहिए थी?


जो बेटियों द्वारा 
संस्थान की अस्मिता के लिए 
आहूत शुद्धि-यज्ञ को 
सियासी साज़िश बताते हैं
ऐसी विभाजनकारी मानसिकता के 
लोग भी 
सरकारी कृपा से कुलपति बन जाते हैं।   

सभ्यता की सीढ़ियाँ 
चढ़ता मनुष्य 
पशुओं से अधिक 
पाशविक-व्यवहार पर 
उतर आया है 
घटना का ज़िक्र देख-सुन 
आँखों में लहू उतर आया है। 

साइकिल पर शाम साढ़े छह बजे 
बीएचयू कैंम्पस में हॉस्टल जाती 
17 वर्षीय एक  छात्रा के 
वस्त्रों में 
बाइक पर सवार होकर 
हाथ डालने के संस्कार 
किसी माँ-बाप ने 
अपने अशिष्ट, मनोरोगी बेटे को दिए हैं?


मीडिया प्रबंधन की 
पोल खुल गई है 
विज्ञापनों के फेर में 
मीडिया-मालिक की 
ज़ेहनियत  पर 
फ़रेबी-संवेदना की 
कलई अब धुल गयी है। 


अफ़सोस! कि वाराणसी एक तीर्थ है 
जहाँ भी मानवता को 
शर्मसार करनेवाले भेड़िये पलते हैं 
सर्वविद्या की सांस्कृतिक राजधानी में
वर्जनाओं की फ़ौलादी ज़मीं पर 
सामंतवादी पुरुषसत्ता की टकसाल में 
सांस्कृतिक बेड़ियों के सिक्के ढलते हैं। 


धरने पर बैठीं बेटियाँ 
अपनी सुरक्षा के लिए 
सड़क पर रात गुज़ारती हैं
अगली अँधेरी रात में 
वे निहत्थी हैं फिर भी 
क्रूर पुरुष-पुलिस की 
सर पर लाठियाँ खातीं हैं। 

कमाल का मलाल है 
बनारसी लोगों के मन में   
उन्हें अफ़सोस है 
कि प्रधानमंत्री के काफ़िले का 
पूर्व निर्धारित रुट बदलने से 
उनके द्वार की मिट्टी  
पवित्र न होने पाई...! 

सुनो! 
खोखली मान्यताओं के पहरेदारो! 
बेटी है अब सड़क पर उतर आई 
नए मूल्यों की इबारत लिखने से 
रोक पाओगे उसे?
सुनो!
पशुओं को भी 
लज्जित कर देने वाले दरिंदो! 
तुम भी किसी के जीवनसाथी 
क्या अब बन पाओगे? 
तुम किसी माई के लाल हो 
किसी बाप की नाक का बाल हो 
तुम भी किसी बहन के हो भाई 
या किसी बेटी के बनोगे बाप..!  
तुम्हारा ज़मीर जाग जाय तो अच्छा है 
वरना!
 जीवनभर अपराधबोध के अंधकार में
अपनी ही नज़रों से गिरकर  
भटकोगे और कचोटेगा संताप..!  


ख़ुफ़िया-तंत्र को चुल्लूभर पानी काफ़ी है 
हमारी ओर से उसे नहीं कोई माफ़ी है। 
ख़बर है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की 
नींद आज खुल गयी है 
राष्ट्रीय महिला आयोग की 
न जाने क्यों घिग्घी बँध गयी है?
©रवीन्द्र सिंह यादव 


"धर्म की बात करने का अधिकार उन्हीं को है जो ख़ुद धर्म पर चलते हैं। तुम ये बताओ कि 

क्या लड़कियों ने यह धर्म का पालन किया कि एक लड़की की अस्मिता को लेकर वे 

बाज़ार पहुँच गईं?"

बीएचयू कुलपति महोदय के इस बयान से खिन्न होकर मैंने यह कविता लिखी।
-रवीन्द्र  

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में हुई छेड़छाड़ की अभद्र घटना पर मेरा लेख -
                       राष्ट्रवाद की चालाक व्याख्या में पिसती छात्राओं की आज़ादी
                                   https://hamaraakash.blogspot.in/2017/09/blog-post.html


शब्दार्थ / पर्यायवाची।   WORD MEANINGS 
कुलपति= विश्वविद्यालय का शीर्ष अधिकारी /VICE  CHANCELLOR  
संस्थान - INSTITUTE 
अस्मिता = गौरव ,गरिमा , अभिमान ,पहचान / PRIDE 
क़ुर्बान= मिटा देना(स्वयं को ) , बलिदान करना , त्याग करना /                             SACRIFICE 
बीएचयू = बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी 
पाशविक व्यवहार= पशुओं जैसा बर्ताव , नृशंस व्यवहार /BEHAVE                                         LIKE ANIMAL, BRUTAL ACTIVITIES 
साइकिल = मानवीय ऊर्जा से चालित दो पहिया वाहन / BICYCLE 
              (BI = दो , CYCLE = चक्र / पहिया अर्थात जिसमें दो पहिये हों )
बाइक = मोटर साइकिल, स्वचालित दो पहिया वाहन / MOTOR                           CYCLE  / BIKE 

अशिष्ट = असभ्य , शिष्टाचार से परे ,बदतमीज़ ,गुस्ताख़ /                                       UNCIVILIZED
फ़रेबी-संवेदना= छुपे ग़लत मक़सद की संवेदना / FALSE                                                 SENSITIVITY 
ज़ेहनियत = मानसिकता / MENTALITY 

5 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय रविन्द्र जी --- सामयिक ज्वलंत विषय पर आपकी ये विचारोत्तेजक रचना झझकोरने वाली है | एक सच्चे कवि और चिन्तक की सार्थक फटकार मन को छू जाती है | एक संस्कारी और शिक्षित राष्ट्र के एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में बेटियों के साथ अभद्र व्यवहार सचमुच घोर निंदनीय है | उस पर सामूहिक मौन !? ! बेहद दर्दनाक और शर्मनाक है | इस अशिष्टता से महामना मालवीय जी की आत्मा को बहुत संताप हो रहा होगा - जिन्होंने समाज के सुखद. शिक्षित भविष्य की परिकल्पना कर इस अनुपम संस्था की नींव रखी थी | लानत है ऐसे लोगों पर जो घर में आदर्श बेटा , भाई और पिता हैं पर घर से बाहर आकर एक नृशंस भेडिये की शक्ल में परिवर्तित हो जाते हैं | उन्हें तो सचमुच चुल्लू भर पानी में डूब ही मरना चाहिए | जिस दिन ये दोहरे मापदंड संपत हो जायेंगे -- देश की बेटियों के स्वर्णिम दिन आ जायेंगे | हमारी बेटियां समस्याओं से जूझकर बाहर निकलने में सक्षम हैं | - पर उनके साथ अभद्र व्यवहार दुखद तो है ही- कुलपति का गैर जिम्मेदार बयान और भी हैरान करता है !!!!! कठिन शब्दों के अर्थ लिख रचना को समझ पाने में सरलता तो होती ही है साथ ही शब्द ज्ञान भी बढ़ता है | सार्थक रचना के साथ हिंदी पाठकों के लिए आपका ये योगदान अतुलनीय है और मुक्त कंठ से सराहने योग्य है | सादर शुभकामना आपको |

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (26-08-2020) को   "समास अर्थात् शब्द का छोटा रूप"   (चर्चा अंक-3805)   पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --  
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
    --

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  3. विचारोत्तेजक प्रस्तुति

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  4. एक सच्चे साहित्यकार का समसामायिक दुर्भाग्य पूर्ण घटना पर बहुत सटीक प्रहार।
    सच मानवता शर्मसार है और उसपर एक बुद्धिजीवी का इतना गैरजिम्मेदाराना, शर्मनाक बयान।
    सामायिक विषय , विचारोत्तेजक प्रस्तुति।

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