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सोमवार, 6 नवंबर 2017

वो शाम अब तक याद है.....






वो शाम अब तक याद है 

दर--दीवार पर 

गुनगुनी सिंदूरी धूप खिल रही थी 

नीम के उस पेड़ पर 

सुनहरी  हरी पत्तियों पर 

एक चिड़िया इत्मीनान से 

अपने प्यारे चिरौटा से मिल रही थी 

ख़्यालों में अब अजब 

हलचल-सी  हो रही थी  

धड़कन एक नाम लेने को 

बेताब हो रही थी 

उस रोज़ था मंज़र बड़ा सुहाना  

था तमन्नाओं का पस-मंज़र वही पुराना 

दिल में कसक-सी हो रही थी 

पीछे से आकर आपने 

अपनी नाज़ुक हथेलियों से 

मेरी आँखें जो बंद की थीं 

फुसफुसाकर कान में जो कहा था 

वो लफ़्ज़ अब तक याद है 

वो शाम अब तक याद है 

शाम अब तक याद है 

याद है ..... 

याद है ...... 

© रवीन्द्र सिंह यादव 



VO SHAAM AB TAK YAAD HAI

DAR-O-DEEVAR  PAR

GUNGUNEE  SINDOOREE  DHOOP  KHIL RAHEE  THEE

NEEM KE US PED PAR

SUNAHAREE  HAREE PATTIYON PAR

EK CHIDIYAA ITMEENAAN SE

APNE PYAARE CHIRAUTAA SE MIL RAHEE THEE

KHAYAALON MEN AB AJAB

HALCHAL-SEE HO RAHEE THEE

DHDKAN  EK NAAM LENE KO

BETAAB HO RAHEE THEE

US ROZ THAA MANZAR BADA SUHANAA

THA TAMANNAON KA  PAS-MANZAR VAHEE PURANAA

DIL MEN KASAK-SEE HO RAHEE THEE

PEECHHE SE AAKAR AAPNE

APNEE  NAAZUK HATHELIYON SE

MERI  AANKHEN  JO BAND KI THEEN

PHUSPHUSAAKAR  KAAN MEN JO KAHAA THAA

VO LAFZ AB TAK YAAD HAI

VO SHAAM AB TAK YAAD HAI

SHAAM AB TAK YAAD HAI

YAAD HAI

YAAD HAI......



सूचना -इस रचना को सस्वर सुनने के लिए  YouTube Link-



शब्दार्थ / WORD MEANINGS 

गुनगुनी सिंदूरी धूप = सिंदूर (लालामी ) रंग की सर्दियों में प्रिय लगने वाली हल्की धूप

                                 VERY  LIGHT  WARM  SUNLIGHT  WHICH GIVES  FEEL  
                                                     GOOD. 


दर--दीवार = दरवाज़े और दीवारें / DOORS AND WALLS,  EACH AND EVERY PART  OF  DWELLING.

सुनहरी = सोने जैसे रंग की / का / GOLDEN COLOUR 


इत्मीनान = पूर्ण संतुष्टि के साथ / SATISFACTION 

चिरौटा = पुरुष (नर) चिड़िया, चिड़ा, चिड़वा / MALE SPARROW 

मंज़र = दृश्य / SCENE 

पस-मंज़र = पृष्ठभूमि / BACKGROUND 






15 टिप्‍पणियां:

  1. वाह!!क्या बात है !!रविन्द्र जी ,बहुत खूबसूरत ! बहुत ही भावपूर्ण ,जैसा कि आपके हाव-भाव से लग रहा था ..।

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  2. वाह! आदरणीय सर।
    जितनी प्यारी आपकी पंक्तियाँ हैं उतनी ही सुंदर प्रस्तुति भी।
    अप्रतिम,अनुपम,सुंदर 👌
    सादर प्रणाम सर।
    सुप्रभात 🙏

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (17-12-2019) को    "मन ही तो है"   (चर्चा अंक-3552)   पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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  4. जाड़े की गुनगुनी धूप सी गुनगुनी और रेशमी ख़यालात वाली रुमानियत की चाशनी से सराबोर रचना ... लगता है .. किसी अपने की रुमानियत की यादों की बयार छू कर गुजरी हो आपको ...

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  5. प्रकृति और अंतस से निकले बहुत ही सुन्दर शब्द चित्र
    सादर

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  6. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में बुधवार 13 मई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  7. बहुत सुंदर प्रस्तुति

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  8. बेहतरीन रचना बहुत अच्छा लगा

    जवाब देंहटाएं
  9. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 21 सितम्बर 2020 को साझा की गयी है............ पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  10. बेहतरीन प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  11. उस रोज़ था मंज़र बड़ा सुहाना
    था तमन्नाओं का पस-मंज़र वही पुराना
    दिल में कसक-सी हो रही थी
    पीछे से आकर आपने
    अपनी नाज़ुक हथेलियों से
    मेरी आँखें जो बंद की थीं
    फुसफुसाकर कान में जो कहा था
    वो लफ़्ज़ अब तक याद है
    वो शाम अब तक याद है
    शाम अब तक याद है ...वाह!ज़िंदगी के हर लम्हें को कविता में गूँथना...बेहतरीन।
    सादर

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  12. गहन प्रेमिल अनुभूतियों को शब्दांकित करती अत्यंत सुंदर, भावपूर्ण रचना 👌👌👌👌 भावभीनी,मधुर याद को समेटे कोई सुहानी शाम
    शब्दों में जीवंत हो गयी है। 🙏🙏💐💐

    जवाब देंहटाएं
  13. उस रोज़ था मंज़र बड़ा सुहाना
    था तमन्नाओं का पस-मंज़र वही पुराना
    दिल में कसक-सी हो रही थी
    पीछे से आकर आपने
    अपनी नाज़ुक हथेलियों से
    मेरी आँखें जो बंद की थीं
    फुसफुसाकर कान में जो कहा था
    वो लफ़्ज़ अब तक याद है
    वो शाम अब तक याद है
    शाम अब तक याद है ...
    खूबसूरत यादों के साथ बहुत ही खूबसूरत सृजन
    वाह!!!

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  14. वो शाम अब तक याद है ...वाह !अनुज ...बेहतरीन !

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