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शनिवार, 2 जून 2018

गुज़रे हुए सालों की तरफ़

गुज़रे हुए 
सालों की तरफ़ 
दौड़ी है आज 
थकी बेचैन नज़र 
फ़िक़रे और तंज़ का 
वो दौर 
जिसमें नहीं था 
कोई हम-सफ़र।

चाँद से माँगी थी 
शबनम में भीगी 
ठंडी चाँदनी 
मगर सूरज 
अड़ गया 
दिखाने अपनी 
शोलों-सी मर्दानगी। 

धूप सहन न हुई 
तो आये 
पीपल के 
घने साये में 
हवा को न जाने 
क्या हुआ 
उड़ा ले गयी पत्ते 
किसी के बहकाबे में। 

शहर से 
आया था गाँव 
शुद्ध हवा की ख़ातिर 
पेड़ काटे 
ईंट-भट्टे में जला दिये 
इंसान हो गया है 
बड़ा शातिर।  


चमन तक 
साथ चले हम-नवा 
बयाबान आया 
तो किनारा कर गये 
वक़्त के साथ 
बदला है इंसान भी  
वो पीठ पर वार 
दोबारा कर गये।  

#रवीन्द्र सिंह यादव 



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