गुज़रे हुए
सालों की तरफ़
दौड़ी है आज
थकी बेचैन नज़र
फ़िक़रे और तंज़ का
वो दौर
जिसमें नहीं था
कोई हम-सफ़र।
चाँद से माँगी थी
शबनम में भीगी
ठंडी चाँदनी
मगर सूरज
अड़ गया
दिखाने अपनी
शोलों-सी मर्दानगी।
धूप सहन न हुई
तो आये
पीपल के
घने साये में
हवा को न जाने
क्या हुआ
उड़ा ले गयी पत्ते
किसी के बहकाबे में।
शहर से
आया था गाँव
शुद्ध हवा की ख़ातिर
पेड़ काटे
ईंट-भट्टे में जला दिये
इंसान हो गया है
बड़ा शातिर।
चमन तक
साथ चले हम-नवा
बयाबान आया
तो किनारा कर गये
वक़्त के साथ
बदला है इंसान भी
वो पीठ पर वार
दोबारा कर गये।
बयाबान आया
तो किनारा कर गये
वक़्त के साथ
बदला है इंसान भी
वो पीठ पर वार
दोबारा कर गये।
#रवीन्द्र सिंह यादव
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