घरेलू कामकाज में
रमी रहती बहुरिया
एक दिन बीमार हो गयी
घरवाले बेचैन रहे
बच्चे परेशान रहे
काली कुतिया
भूखी ही सो गयी
प्यासी चिड़ियाँ
चहचहाती रहीं
गमलों में कलियाँ
इंतज़ार करती रहीं
दवा, फल, जूस आदि का
भरपूर इंतज़ाम हुआ
पूरा परिवार चिंता में
परेशान तमाम हुआ
चलभाषी संदेशों में
ख़ैरियत के
ख़ूबसूरत ख़्याल
बच्चों के मर्मस्पर्शी
मासूम सवाल
सहानुभूति भरे
मीठे बोलों की
सुहानी बौछार आयी
ज़िन्दगी का ख़तरे में होना
क्या यक़ीनन अच्छा है......?
सोचकर बहुरिया
मन ही मन मुस्कायी।
# रवीन्द्र सिंह यादव
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