गुरुवार, 21 जून 2018

ख़लिश दिल की

रोते-रोते 
ख़त लिखा 
अश्क़ों का दरिया
बह गया 
हो गए  
अल्फ़ाज़ ग़ाएब 
बस कोरा काग़ज़
रह गया
अरमानों की 
नाज़ुक कश्ती में 
गीले जज़्बात रख  
दरिया-ए-अश्क़ में
बहा दिया 
हसरतों का 
आज भी 
अंतर में 
जल रहा दीया 
गलने से पहले 
मिल जाय गर 
सुन लेना 
सिसकती सदाएँ  
महसूसना 
तड़प-ओ-ख़लिश पुरअसर। 

© रवीन्द्र सिंह यादव    

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