रोते-रोते
ख़त लिखा
अश्क़ों का दरिया
बह गया
हो गए
अल्फ़ाज़ ग़ाएब
बस कोरा काग़ज़
रह गया
अरमानों की
नाज़ुक कश्ती में
गीले जज़्बात रख
दरिया-ए-अश्क़ में
बहा दिया
हसरतों का
आज भी
अंतर में
जल रहा दीया
गलने से पहले
मिल जाय गर
सुन लेना
सिसकती सदाएँ
महसूसना
तड़प-ओ-ख़लिश पुरअसर।
© रवीन्द्र सिंह यादव
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