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शुक्रवार, 27 जुलाई 2018

नाम ( तीन क्षणिकाऐं )



1
वो नज़र फिरी
तो क्या हुआ
दास्तान-ए-ग़म की
लज़्ज़त तो बरक़रार है,
मेरे क़िस्से में उनका
उनके में मेरा नाम
आज भी शुमार है।


2
सहरा में
रेत का
चमकना
मानो
सितारों की
झिलमिल चिलमन
के परे हो
मेरी कहकशाँ
ख़ुश हूँ कि
उनके फ़लक़ पर है
मेरा भी नाम-ओ-निशाँ।  

3
तन्हा सफ़र
भला किस
मुसाफ़िर को  
अच्छा लगा,
वो क़हक़हे
वो दिल्लगी
जो थी दिल-नशीं
यादों में वो नाम
चलते-चलते
सच्चा लगा।
© रवीन्द्र सिंह यादव

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (30-08-2020) को    "समय व्यतीत करने के लिए"  (चर्चा अंक-3808)    पर भी होगी। 
    --
    श्री गणेशोत्सव की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
    --

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  2. वाह !बेहतरीन सर।
    सादर प्रणाम

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