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शुक्रवार, 7 दिसंबर 2018

अमरबेल (वर्ण पिरामिड )



मैं 
रहूँ 
सदैव 
हरी-भरी 
पैरासूट-सी 
आच्छादित होती 
मेज़बान    पेड़     पे।  



मैं 
तो हूँ 
घोषित 
परजीवी 
आतिथेय से  
हासिल पोषण 
झेलूँ  दोषारोपण।



जो 
होता 
मुझमें 
क्लोरोफिल 
स्वाभिमान से
सजती-खिलती   
जीती   अमरबेल। 

© रवीन्द्र सिंह यादव
























6 टिप्‍पणियां:

  1. है
    रक्त
    पिपासु
    खेले-खेल
    अमरबेल
    प्राण हर कर
    अबोध-सा मुस्काये
    रवींद्र जी,अलहदा विषय पर बेहतरीन लेखन।
    और तस्वीरें ख़ासकर बेहद अच्छी हैं..👌👌

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  2. बहुत खूब ....
    शब्द चित्र है ये रचना ... पर जीवी होना ... क्लोरोफिल होना ... गज़ब की प्रयोगात्मक रचना ...
    विज्ञान और साहित्य का संगम ...

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (07-11-2019) को      "राह बहुत विकराल"   (चर्चा अंक- 3512)    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. बहुत खूब... बेहतरीन तस्वीरों से सजी सुंदर रचना ,सादर नमन सर

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  5. मैं
    तो हूँ
    घोषित
    परजीवी
    आतिथेय से
    हासिल पोषण
    झेलूँ दोषारोपण... बेहतरीन सृजन आदरणीय
    सादर

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