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सोमवार, 6 अप्रैल 2020

माचिस की तीली

एक सिरे पर 

फॉस्फोरस लगीं तीलियाँ 

चुपचाप रहती हैं लेटे-लेटे, 

माचिस के भीतर 

अपने भीतर 

अप्रत्याशित आग समेटे। 

तीलियाँ निभातीं हैं 

ख़ामोश होकर 

साथ रहने की रस्म,

अगर ये लड़ने-झगड़ने 

ज़ोर-ज़ोर से रगड़ने पर 

उतर आएँ  

तो हो जाएगी 

माचिस की डिबिया भस्म।   

उपभोक्ता 

निकालता / निकालती है 

एक दुबली-पतली तीली

बीड़ी-सिगरेट जलाने,

चूल्हा जलाने,

छप्पर / घर जलाने,

खरपतवार जलाने, 

पराली जलाने,

कान खुजलाने, 

दीया / ढिबरी / लालटेन / मशाल / मोमबत्ती जलाने,

शहरी ज़हरीला कचरा

चोरी से जलाने, 

दंगों में घिरे 

पेट्रोल छिड़के 

मासूम व्यक्ति को जलाने,

केरोसिन / पेट्रोल से भीगी

या लीक एलपीजी में घिरी  

बेबस स्त्री को जलाने! 

आसमान तुम बरसा देना

तीलियाँ सीलने के लिए   

आँसू, पसीना, ओले, कोहरा  

जब-जब तीलियों का प्रयोग 

मानवता के विरुद्ध हो! 

© रवीन्द्र सिंह यादव

15 टिप्‍पणियां:

  1. जब-जब तीलियों का प्रयोग
    मानवता के विरुद्ध होता है
    नहीं सुनता बहरा नभ!

    सार्थक लेखन

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  2. वाह!!रविन्द्र जी ...दिल को अंंदर तक छू गई आपकी रचना ।

    जवाब देंहटाएं
  3. "आसमान तुम बरसा देना
    तीलियाँ सीलने के लिये
    आँसू, पसीना, ओले
    जब-जब तीलियों का प्रयोग
    मानवता के विरुद्ध हो!"
    वाह!आदरणीय सर बेहद उम्दा।
    सदा की भाँति निःशब्द करती आपकी यह रचना। उचित कहा आपने ये तीलियाँ तो चुप ही रहती हैं तबतक जबतक इनका उपभोक्ता इन्हें ना निकालें। और जब जब स्वार्थ हेतु, मानवता के नाश हेतु ये तीलियाँ निकलती हैं तब तब विनाश साथ लाती हैं...पूर्ण विनाश।

    सादर नमन आदरणीय सर आपको और आपकी कलम को।

    जवाब देंहटाएं
  4. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (7-4-2020 ) को " मन का दीया "( चर्चा अंक-3664) पर भी होगी,
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    ---
    कामिनी सिन्हा

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  5. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  6. सार्थक रचना आदरणीय भाई रवींद्र जी | माना माचिस की तीली सब विध्वंसक चींजों के लिए प्रयुक्त होती है पर प्रातः और संध्या वन्दन का दीपक भी इसी माचिस से जलाया जाता तो पीर पैगंबरों की दरगाहों के चिराग़ भी इसी जलते हैं | इसी तरह गुरूद्वारे की एक जोत और गिरजाघर की मोमबत्तियां भी इसी से जलती होंगी | इस प्रज्वलन के पीछे परिवार , समाज और मानव मात्र के प्रति सदभावनाएँ निहित होती हैं हम इसी कल्पना ही क्यों करें कि ये अशुभ कार्यों के लिए प्रयोग हो शुभ कामों के लिए क्यों नहीं | और ईश्वर करे हम सब लोग इन विध्वंसक तीलोयों की तरह नहीं बल्कि रसोई के बर्तनों की तरह रहें जो आपस में टकराते भी हैं और चोटिल भी होते हैं पर रहते एक ही जगह हैं | सादर --

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  7. . तीलियों का मुख्य प्रयोजन अगर नकारात्मक चीजों के लिए होता है तो उसके द्वारा पैदा हुई आग अच्छे खासे माहौल को समाज को इंसानी जान को पल भर में खाक में बदल सकती .. बस यह सिर्फ सुनिश्चित करना होता है कि वह दरअसल किन लोगों के हाथों में है..
    जब तक वो तीलियां एक गृहिणी के हाथों में है, तो वह उन तीलियों का प्रयोग करके घर में रोशनी और भोजन तैयार करेंगी लेकिन अगर वह तीलियां कि नहीं समाज के ठेकेदारों के हाथ में है तो वह उन तीलियों का प्रयोग उसी समाज को जलाने को करेंगे जहाँँ को वह खुद भी रहते हैं, लेकिन उसकी आग से वो खुद को बचा लेंगे लेकिन दूसरी मजलूम बेकसूर लोग मारे जाएंगे..।
    यहां आपकी कल्पना और इच्छा शक्ति को नमन करना होगा कि आपने इतनी बड़ी बात माचिस की तीलियों के द्वारा एक ऐसे विचार को यहां व्यक्त किया है जो हम सभी के दिमाग में है लेकिन हम उन चीजों को मानते नहीं है.
    आंख के अंदर होती है सिर्फ जरूरत है उसे सही जगह प्रयोग करने की बहुत ही बेहतरीन काव्य रचना की है आपने यह वाकई आने वाले समय में एक मील का पत्थर साबित होगी इसी तरह की रचनाएं आप लिखा कीजिए बहुत-बहुत धन्यवाद आपको

    जवाब देंहटाएं
  8. विज्ञान वरदान भी है और अभिशाप भी। माचिस की तिल्ली भी वही है। सुंदर रचना।

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  9. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 07 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  10. आदरणीया/आदरणीय आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर( 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-२ हेतु नामित की गयी है। )

    'बुधवार' ०८ अप्रैल २०२० को साप्ताहिक 'बुधवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य"

    https://loktantrasanvad.blogspot.com/2020/04/blog-post_8.html

    https://loktantrasanvad.blogspot.in/



    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।


    आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'

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  11. ख़ामोश होकर

    साथ रहने की रस्म,

    अगर ये लड़ने-झगड़ने

    ज़ोर-ज़ोर से रगड़ने पर

    उतर आयें

    तो हो जाएगी

    माचिस की डिबिया भस्म। बहुत खूब रवींंद्रजी

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  12. आसमान तुम बरसा देना

    तीलियाँ सीलने के लिये

    आँसू, पसीना, ओले, कोहरा

    जब-जब तीलियों का प्रयोग

    मानवता के विरुद्ध हो!
    वाह!!!!
    क्या बात....
    काश ऐसा हो.....मानवता के विरुद्ध कर्म को आसमान या धरती रोके....क्योंकि इन कुकृत्यों के प्रथम साक्ष्य ये ही तो होते हैं...धरा आसमां अपनी निस्तब्धता को तोड़ दें तो बात ही कुछ और हो
    बहुत ही सुन्दर सृजन।

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  13. हर एक में एक आग है
    वो तब तक नहीं लगती जब तक कोई उसको तुल ना दे.
    बस इसीलिए प्रेम की जरूरत होती है...
    जहाँ मानव खतरे में पड़ता है हम चाहते हैं सिर्फ सीलन... प्रेम की बरसात.
    बहुत उम्दा रचना.
    नई रचना- एक भी दुकां नहीं थोड़े से कर्जे के लिए 

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