आशा जन्म लेती है
स्वप्निल स्वर्णिम सुखी आकाश-सा कैनवास लिए
जुड़ जाती है
नवजात के साथ जन्म से
तीव्र हो उठती है
किशोर वय में
युवाओं में चहकती है / फुदकती है
सुरमई लय में
न जलती है
न दफ़्न होती है
बुढ़ापे की
अंतिम सांस के स्थिर होने पर
कमज़ोर नहीं पड़ती
जाऱ-ज़ार रोने पर
सुखकारी परिवर्तन की आशा
कभी नहीं मरती
इंसान में
भटकाव के भंवर से उबरने की आशा
कभी नहीं मरती
आशा बनी रहेगी
बेहतर संसार के लिए
फूल खिलते रहेंगे
भंवरों-तितलियों के
अनंत अतुलित प्यार के लिए।
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (01-05-2020) को "तरस रहा है मन फूलों की नई गंध पाने को " (चर्चा अंक-3688) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है ।
"मीना भारद्वाज"
आशा तृष्णा ना मरी कह गए दास कबीर.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय सर
जवाब देंहटाएंसादर
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार १ जुलाई २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत ही सराहनीय अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंआशा जन्म लेती है
जवाब देंहटाएंबढ़िया..
सादर...
आशा ही है जो हर समय हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है । अच्छी रचना ।
जवाब देंहटाएंप्रेरणादायक सृजन,सादर नमस्कार सर 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सीतल झरने-सा बहता सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर
आशा बनी रहेगी
जवाब देंहटाएंबेहतर संसार के लिए
फूल खिलते रहेंगे
भंवरों-तितलियों के
अनंत अतुलित प्यार के लिए।
वाह!!!
क्या बात...
इंसान मरते हैं आशाएं नहीं ...आशाएं तब्दील होती नयेपन नये जीवन के साथ।
बहुत ही लाजवाब सृजन