गुरुवार, 30 अप्रैल 2020

आशा कभी नहीं मरती

आशा जन्म लेती है स्वप्निल स्वर्णिम सुखी आकाश-सा कैनवास लिए जुड़ जाती है नवजात के साथ जन्म से तीव्र हो उठती है किशोर वय में युवाओं में चहकती है / फुदकती है सुरमई लय में न जलती है न दफ़्न होती है बुढ़ापे की अंतिम सांस के स्थिर होने पर कमज़ोर नहीं पड़ती जाऱ-ज़ार रोने पर सुखकारी परिवर्तन की आशा कभी नहीं मरती इंसान में भटकाव के भंवर से उबरने की आशा कभी नहीं मरती आशा बनी रहेगी बेहतर संसार के लिए फूल खिलते रहेंगे भंवरों-तितलियों के अनंत अतुलित प्यार के लिए।
©रवीन्द्र सिंह यादव  

10 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (01-05-2020) को "तरस रहा है मन फूलों की नई गंध पाने को " (चर्चा अंक-3688) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है ।

    "मीना भारद्वाज"

    जवाब देंहटाएं
  2. आशा तृष्णा ना मरी कह गए दास कबीर.

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय सर
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १ जुलाई २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ही सराहनीय अभिव्यक्ति ।

    जवाब देंहटाएं
  6. आशा जन्म लेती है
    बढ़िया..
    सादर...

    जवाब देंहटाएं
  7. आशा ही है जो हर समय हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है । अच्छी रचना ।

    जवाब देंहटाएं
  8. प्रेरणादायक सृजन,सादर नमस्कार सर 🙏

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत ही सुंदर सीतल झरने-सा बहता सृजन।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  10. आशा बनी रहेगी

    बेहतर संसार के लिए

    फूल खिलते रहेंगे

    भंवरों-तितलियों के

    अनंत अतुलित प्यार के लिए।
    वाह!!!
    क्या बात...
    इंसान मरते हैं आशाएं नहीं ...आशाएं तब्दील होती नयेपन नये जीवन के साथ।
    बहुत ही लाजवाब सृजन

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणी का स्वागत है.

विशिष्ट पोस्ट

अभिभूत

बालू की भीत बनाने वालो  अब मिट्टी की दीवार बना लो संकट संमुख देख  उन्मुख हो  संघर्ष से विमुख हो गए हो  अभिभूत शिथिल काया ले  निर्मल नीरव निर...