चित्र साभार: गूगल
भारतीय संविधान के रचयिता भारतरत्न बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर जी की आज जयंती है जो देशभर में उत्सव की भाँति मनाई जाती है। 14 अप्रैल 1891 को जन्मे बाबा साहब का जीवन अत्यंत संघर्षपूर्ण रहा। देश जब ब्रिटिश हुकूमत का ग़ुलाम था तब उन्होंने विपरीत परिस्थितियों से जूझते हुए उच्च शिक्षा में दक्षता प्राप्त करके एक बेमिशाल प्रेरणादाई मक़ाम हासिल किया और दलित-चेतना, आंदोलन एवं विमर्श को नवीन अर्थों में स्थापित किया।
वे लोगों को प्रेरित करते हुए कहते हैं-
"मेरी प्रशंसा और जय-जयकार करने से अच्छा है मेरे दिखाए मार्ग पर चलो।"
"अगर शरीर के अलग-अलग हिस्सों के पास अभिव्यक्ति की शक्ति होती और प्रत्येक यह कहता कि वह शेष से उच्चतर और बेहतर है तो शरीर टुकड़े-टुकड़े हो चुका होता।"
"शिक्षित बनो, संगठित होओ, संघर्ष करो।"
समता,स्वतंत्रता और न्याय की अवधारणा को हमारे संविधान में स्थापित करने वाले बाबा साहब हरेक उस पीड़ित,वंचित,उपेक्षित, ग़रीब एवं दमन के शिकार व्यक्ति को प्रिय हैं जो अपने अधिकारों से जुड़े सम्मान को हासिल करना चाहता है। उनके नेतृत्त्व में सामाजिक भेदभाव और शोषण पर आधारित वर्ण-व्यवस्था के ख़िलाफ़ बुलंद आवाज़ उठी जिसने सामाजिक परिवर्तन का नवीनतम अध्याय रचा।
देश में लंबे समय तक उन्हें दलित नेता के रूप में प्रस्तुत किया जाता रहा जो उनके साथ एक प्रकार का बौद्धिक अत्याचार था। 90 के दशक में देश की राजनीति में आए मूलभूत परिवर्तन के बाद बाबा साहब की स्वीकार्यता समाज के अन्य वर्गों में भी लोकप्रिय होने लगी। अब लोग 14 अप्रैल को सामाजिक न्याय दिवस के रूप में भी मनाते हैं। बाबा साहब भारतीय संविधान के शिल्पकार होने के साथ-साथ अर्थशास्त्री, समाज सुधारक,विद्वान राजनेता एवं मूर्धन्य लेखक के रूप में भी जाने जाते हैं।
आज करोना संकटकाल में बाबा साहब बहुत ज्यादा याद आते हैं।वे हमेशा एक प्रासंगिक व्यक्तित्त्व के रूप में भारतीय जनमानस में सामाजिक समता की वैचारिक क्रांति के जनक के रूप में याद किए जाते रहेंगे। उनकी दिखाई दिशा से व्यवस्था 132 करोड़ नागरिकों के देश भारत को आगे बढ़ा रही है। हमारा शत-शत नमन।
© रवीन्द्र सिंह यादव
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सार्थक,सुंदर लेख आदरणीय सर। बाबा साहब को कोटिशः नमन। सादर प्रणाम 🙏
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